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संवर तथा निर्जरा ४११ परीषह (११) शय्या परीषह (१२) आक्रोश (१३) वध परीषह (१४) याचना परीषह (१५) अलाभ परीषह (१६) रोग परीषह (१७) (१८) जल्ल अथवा मल परीषह (१९) सत्कार पुरस्कार परीषह (२०) प्रज्ञा परीषह (२१) अज्ञान परीषह और (२२) दर्शन परीषह) परीषहों के नाम और सहन के कारण -
मार्गाऽच्यवननिर्जरार्थ. परिषोढव्याः परीषहाः ।८। क्षुत्पिपासाशीतोष्णंदंशमक नाग्न्यारतिस्त्रीचर्यानिषद्याशय्याऽऽक्रोशवधयाचनाऽलाभरोगतृणस्पर्शमलसत्कार पुरस्कारप्रज्ञाऽज्ञानाऽदर्शनानि ।।
(संवर-रत्नत्रयरूप) मोक्षमार्ग से च्युत नहीं हो जावे, इसलिये तथा कर्मों की निर्जरा के लिए परीषहों को (समभाव से) सहन करना चाहिए ।
परीषह बाईस हैं - (१) क्षुधा, (२) तृषा (३) शीत ९४) उष्ण (५) दंशमशक (६) नग्नता (७) अरति (८) स्त्री (९) चर्या (१०) निषद्या (११) शय्या (१२) आक्रोश (१३) वध (१४) याचना (१५) अलाभ (१६) रोग (१७) तृणस्पर्श (१८) मल (१९) सत्कार पुरस्कार (२०) प्रज्ञा (२१) अज्ञान और (२२) अदर्शन ।
विवेचन - परीषह का लक्षण है- परिषह्यत इति परीषहः। - जो सहे जायँ वे परीषह है । इसका सीधा सा अर्थ है- आत्म-साधना में जितनी बाधाएँ (अनुकूल या प्रतिकूल) उपस्थित हों, उन्हें मन में आर्तध्यान अथवा संक्लेश रूप परिणाम किये बिना समभावपूर्वक सहन करना परीषहजय है।
. ऐसी बाधाएँ अनेक हो सकती हैं, किन्तु वर्गीकरण की दृष्टि से मुख्यतः बाईस (२२) बताई हैं -
(१) क्षुधा-परीषह - क्षुधा की तीव्र वेदना होने पर भी यदि प्रासुक निदोर्ष आहार न मिले तो उस वेदना को समभाव से सहना ।
(२) पिपासा - परीषह - तीव्र प्यास लगने पर भी सचित्त जल की मन से भी इच्छा न करना, तृषा वेदना को समभाव से सहना । (३) शीत-परीषह - ठंड से होने वाले कष्ट को समता से सहना। (४) उष्ण-परीषह - गर्मी से होने वाले कष्ट को समभाव से सहना। (५) दंशमशक-परीषह - दंशमशक का यहाँ अभिप्राय है चींटी, मच्छर
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