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बन्ध तत्त्व ३९९ सातावेदनीय, सम्यक्त्वमोहनीय, हास्य, रति, पुरुषवेद, शुभ आयु, शुभनाम और शुभ गोत्र- यह आठ प्रकृतियाँ पुण्य प्रकृतियाँ है ।
विवेचन - प्रस्तुत सुत्र में पुण्य प्रकृतियाँ बताई गई है । इसका फलितार्थ यह है कि इनके अतिरिक्त शेष सब पाप प्रकृतियां है ।
विस्तार की अपेक्षा पुण्य प्रकृतियाँ ४२ हैं
(१) सातावेदनीय (२) उच्चगोत्र ( ३) मनुष्यगति (४) मनुष्यानुपूर्वी (५) देवगति (६) देवानुपूर्वी (७) पंचेन्द्रिय जाति (८) औदारिकशरीर (९) वैक्रियशरीर (१०) आहारकशरीर ( ११ ) तैजसशरीर (१२) कार्मणशरीर ( १३-१५) औदारिक, वैक्रिय, आहारकशरीर के अंगोपांग (१६) वज्रऋषभनाचाराचसंहनन ( १७ ) समचतुरस्रसंस्थान (१८) शुभवर्ण (१९) शुभगंध (२०) शुभरस ९२१) शुभस्पर्श (२२) अगुरुलघुनाम (२३) परावातमनाम (२४) उच्छ्वासनाम (२५) आतपनाम ( प्रतापी होना) (२६) उद्योतनाम (तेजस्विता ) (२७) शुभविहायोगति ( २८ ) शुभनिर्माण नाम (२९) त्रसनाम (३०) बादर नाम (३१) पर्याप्तिनाम (३२) प्रत्येकनाम (३३) स्थिरनाम (३४) शुभनाम (३५) सुभगनाम ( ३६ ) सुस्वरनाम ( ३७ ) आदेयनाम (३८) यशोकीर्तिनाम (३९) देवायु (४०) मनुष्यायु (४१) तिर्यंचायु और (४२) तीर्थंकरनाम ।
इन ४२ प्रकृतियों के उदय से जीव पुण्य का फल भोगता है । पुण्य प्रकृतियों को जानने के साथ-साथ पाप - प्रकृतियों को भी जानना उपयोगी है । पाप - प्रकृतियाँ ८२ है, वह इस प्रकार है
(१-५) पाँच ज्ञानावरणीय ( ६-१० ) पाँच अन्तराय ( ११ - १९) दर्शनावरण की ६ प्रकृतियाँ (२०) असातावेदनीय (२१) मिथ्यात्व मोहनीय (२२) नीच गोत्र ( २३ ) स्थावर नाम (२४) सूक्ष्मनाम (२५) अपर्याप्तिनाम (२६) साधारण नाम (२७) अस्थिरनाम (२८) अशुभनाम (२९) दुर्भगनाम (३०) दुःस्वरनाम (३१) अनादेयनाम (३२) अयशोकीर्तिनाम (३३) नरकगति (३४) नरकायु (३५) नरकानुपूर्वी (३६ - ५१ ) अनन्तानुबन्धी आदि १६ कषाय (५२-६०) हास्यादि ९ नोकषाय (६१) तिर्यंचगति (६२) तिर्यचानुपूर्वी (६३) एकेन्द्रियत्व (६४) द्वीन्द्रियत्व (६५) त्रीन्द्रियत्व (६६) चुतरिन्द्रियत्व (६७) अशुभविहायोगति (६८) उपघातनाम (६९-७२ ) अशुभवर्णादि चार (७३-७७) ऋषभनाराच आदि ५ संहनन (७८ - ८२) न्यग्रोधपरिमण्डल आदि ५ संस्थान
इन ८२ प्रकृतियों के उदय से जीव पाप रूप फल भोगता है।
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