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३८२ तत्त्वार्थ सूत्र : अध्याय ८ : सूत्र १२
इसी आधार पर इस कर्म के भी पाँच भेद हैं - (अ) तिक्तरसनामकर्म (ब) कटुरसनामकर्म (द) कषायरसनामकर्म (य) अम्लरसनामकर्म और (स) मधुरसनामकर्म । इन नामों के अनुसार ही इन कर्मों के उदय से शरीर उस-उस रस वाला होता है । (४७-५१)
(१२) स्पर्शनामकर्म - स्पर्श का अभिप्राय व्यक्ति की त्वक् संवेदना है । शरीर को छूने से जिस प्रकार का अनुभव हो उसे स्पर्श कहते हैं । स्पर्श नामकर्म का उदय शरीर की त्वक् संवेदना को ही निश्चित करता है । . स्पर्शनामकर्म के उत्तर भेद आठ है- .
(अ) गुरुस्पर्शनामकर्म (ब) लघुस्पर्शनामकर्म (द) मृदुस्पर्शनामर्क (य) कर्कशस्पर्शनामकर्म (फ) क्षीतस्पर्शनामकर्म (ज) उष्णस्पर्शनामकर्म (झ) स्निग्धस्पर्शनामकर्म और (ट) रूक्षस्पर्शनामकर्म । (५२-५९)
अपने-अपने नाम के अनुरूप इन कर्मों के उदय से जीव को प्राप्त शरीर क्रमश : १. लोहे जैसा भारी २. रूई जैसा हल्का ३. मक्खन जैसा कोमल ४. गाय की जीभ जैसा खुरखुरा ५. बर्फ जैसा ठंडा ६. आग जैसा गर्म ७. घी जैसा चिकना और (८) बालू जैसा रूखा होता है ।
१३. आनुपूर्वीनामकर्म - इस कर्म का उदय तब होता है जब जीव नया जन्म लेने के लिए विग्रह गति (मोड़ वाली गति) द्वारा अपने नये जन्म स्थान पर जाता है ।
इस कर्म का उदय विग्रह गति में ही होता है, अतः इसका अधिक से अधिक उदयकाल ३ समय मात्र का है ।
इसके चार भेद हैं
(अ) नरकानुपूर्वी नामकर्म - इस कर्म के उदय से जीव विग्रह गति से गमन करता हुआ विश्रेणी स्थित नरक में अपने जन्मस्थान पर पहुंचता है।
इसी प्रकार (ब) तिर्यचानुपूर्वीनामकर्म के उदय से तिर्यंच सम्बन्धी जन्मस्थान पर (स) मनुष्यानुपूर्वीनामकर्म के उदय से मनुष्य सम्बन्धी जन्सस्थान पर और (द) देवानुपूर्वीनामकर्म के उदय से देव सम्बन्धी जन्मस्थान पर पहुँचता है ।
(६०-६३) इस कर्म का उदय तभी होता है जब जीव को नया जन्म लेने के लिए विषम श्रेणी से गमन करना पड़ता है, समश्रेणी से गमन करते समय इसके उदय की आवश्यकता ही नहीं पड़ती ।
(१४) विहायोगतिनामकर्म - इस कर्म का प्रभाव जीव की गमन क्रिया
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