________________
बन्ध तत्त्व ३७५ आगम वचन -
णामेणं भंते ! कम्मे कतिविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! बायालिसविहे पण्णत्ते-तं जहा
गतिनामे (१) जातिनामे (२) सरीरणामे जाव (३) तित्थगरणामे (४२) - प्रज्ञापना पद २३, उ. २, सूत्र २९३;, समवायांग समवाय ४२
(भन्ते ! नाम कर्म कितने प्रकार का है ?
गौतम ! नामकर्म बयालीस प्रकार का है । यथा गतिनाम जातिनाम, शरीरनाम यावत तीर्थंकर नाम ।) नामकर्म के भेद -
गतिजातिशरीरांगोपांग निर्माणबन्धनसंघातसंस्थानसंहननस्पर्श रसगन्धवर्णानुपूर्व्यगुरुलघूपघातपराघातातपौद्योतोच्छ्वासविहायो-गतयः प्रत्येकशरीरत्रससुभगसुस्वरशुभसूक्ष्मपर्याप्तिस्थिररादेययशांसि सेतराणि तीर्थकृत्त्वं च ।१२।
(१) गति (२) जाति (३) शरीर (४) अंगोपांग (५) निर्माण (६) बंधन (७) संघात (८) संस्थान (९) संहनन (१०) स्पर्श (११) रस (१२) गंध (१३) वर्ण (१४) आनुपूर्वी (यह १४ पिंड प्रकृतियाँ) (१५) अगुरुलघु (१६) उपघात (१७) पराघात (१८) आतप (१९) उद्योत (२०) उच्छ्वास (२१) विहायोगति (२२) तीर्थंकर (यह ८ प्रत्येक प्रकृतियां) (२३) प्रत्येकशरीर (२४) त्रस (२५) सुभम (२६) सुस्वर (२७) शुभ (२८) सूक्ष्म (२९) पर्याप्ति (३०) स्थिर (३१) आदेय (३२) यशःकीर्ति (यह त्रसदशक - १० प्रकृतियाँ) तथा इनसे उलटी (३३) साधारणशरीर (३४) स्थावर (३५) दुर्भग (३६) दुःस्वर (३७) अशुभ (३८) बादर. (३९) अपर्याप्ति (४) अस्थिर (४१) अनादेय और (४२) अयशःकीर्ति – (यह १० स्थावरदशक) - इस प्रकार नाम कर्म की ४२ उत्तरप्रकृतियां हैं ।
विवेचन - नामकर्म की प्रकृतियों के मूल ४ भेद हैं - (१) पिण्ड प्रकृतियाँ (२) प्रत्येक प्रकृतियाँ (३) त्रसदशक और (४) स्थावरदशक । इनके क्रमशः उत्तर भेद १४+८+१०+१०=४२ हैं । यही प्रकृतियाँ आगमोक्त उद्धरण और प्रस्तुत सूत्र में बताई गई है ।
किन्तु बंध, उदय, सत्ता आदि की विचारणाहेतु नामकर्म की ९३ प्रकृतियाँ मानी गई हैं । इसका कारण यह है कि १४ पिंडप्रकृतियों के अवान्तर भेद भी हैं । जैसे - गति पिण्ड प्रकृति के देवगति, नरकगति,
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org