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१६६ तत्त्वार्थ सूत्र : अध्याय ४ : सूत्र ६
( असुरकुमारों के दो इन्द्र होते हैं- चमर और बलि । इसी प्रकार नागकुमारों के दो इन्द्र, यावत् गन्धर्वों के दो इन्द्र होते हैं । .
( इसी प्रकार भवनवासी एवं व्यन्तर देवों के भी दो-दो इन्द्र होते
हैं ।
भवनवासी एवं व्यन्तर देवों के इन्द्रों की संख्या
पूर्वयोर्द्वन्द्राः | ६ |
पूर्व अर्थात् पहले दो देवनिकायों के दो-दो इन्द्र होते हैं ।
विवेचन - पूर्व के देवनिकाय से अभिप्राय भवनवासी और व्यंतर देवों से है । इनके भी अवान्तर भेद क्रमशः दश और आठ हैं । इन सभी अवांतर भेदों के दो-दो इन्द्र होते हैं ।
इनमें से एक उत्तरदिशा तथा एक दक्षिणदिशा का स्वामी होता है । इन्द्रों के नाम इस प्रकार है
जैसे १ असुरकुमारों के इन्द्र- चमर और बलि । २. नागकुमारों केधरण और भूतानन्द ३. सुपर्णकुमारों के वेणुदेव और वेणुदाली । ४. विद्युतकुमारों के-हरि और हरिसह । ५. अग्निकुमारों के - अग्निशिख और अग्निमाणव । ६. द्वीपकुमारों के -पूर्ण और वशिष्ट ७. उदधिकुमारों के - जलकान्त और जल प्रभ. ८. दिक्कुमारों के अमितगति और अमितवाहन ९. वायुकुमारों के वेलम्ब और प्रभंजन । १०. स्तनितकुमारों के घोष और महाघोष |
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प्रकार हैं
१. पिशाचों के २. भूतो के
३. यक्षों के
४. राक्षसों के
५. किन्नरों के ६. किंपुरुषों के
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इसी प्रकार व्यन्तरनिकाय में भी दो-दो इन्द्र होते हैं, जिनके नाम इस
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१ सुरूप २ प्रतिरूप
१ पूर्णभद्र २ मणिभद्र
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१ काल २ महाकाल
१ भीम २ महाभीम
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१ किन्नर २ किंपुरुष
१ सत्पुरुष २ महापुरुष
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