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२४२ तत्त्वार्थ सूत्र : अध्याय ५ : सूत्र २३-२८
अणु एवं स्कन्ध : निर्माण आदि के हेतु
पुद्गल के प्रमुख भेद दो हैं (१) अणु और (२) स्कन्ध । अणु पुद्गल का अविभाजी, सूक्ष्मतम अंश है । वस्तुतः यही पुद्गल द्रव्य है । स्कन्ध इन्हीं संख्यात असंख्यात अणुओं का समन्वित रूप हैं ।
स्कन्धों का निर्माण (१) पृथकीकरण से, (२) जुड़ने - संयोजन से तथा (३) संयोजन-विसंयोजन - दोनों - इस प्रकार तीनों तरह से होता है ।
उदाहरणार्थ एक बड़े स्कन्ध के विसंयोजन अथवा विखण्डन से अनेक छोटे-छोटे स्कन्ध बन जाते हैं तथा कई छोटे-छोटे स्कन्धों के संयोजन से एक बड़ा स्कन्ध निर्मित हो जाता है ।
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किन्तु | अणु का निर्माण सदा ही विसंयोजन से होता है
आगम में संयोजन के लिए एकत्व और विसंयोजन के लिए पृथकत्व शब्द दिया गया है ।
चाक्षुष (चक्षु इन्द्रिय से दृष्टिगोचर होनेवाले) स्कन्धों का निर्माण केवल भेद और संघात ( एकत्व और पृथकृत्व) से ही होता है ।
पुद्गलपरिणाम अति विचित्र और असंख्यात प्रकार का है । यह आवश्यक नहीं कि असंख्यात या अनन्त पुद्गल परमाणुओं द्वारा निर्मित स्कन्ध दृष्टिगोचर हो ही । महास्कन्ध भी सूक्ष्म होता है, वह दिखाई नहीं देता ।
वास्तव में स्थूलता और सूक्ष्मता पुद्गल द्रव्य की पर्यायें हैं । जब पुद्गल स्कन्ध सूक्ष्म पर्याय रूप परिणमन करते हैं तो दिखाई नहीं देते और जब वे स्थूल पर्याय रूप परिणमन करते हैं तो दिखाई देने लगते हैं, दृष्टिगोचर हो जाते हैं, चाक्षुष बन जाते हैं ।
एक उदाहरण लें । हाइड्रोजन एक गैस हैं, ऑक्सीजन भी एक गैस । यह सामान्यतया दिखाई नहीं देती । किन्तु जब हाइड्रोजन के दो अणु और ऑक्सीजन का एक अणु मिलते हैं, परस्पर क्रिया करते हैं तो पानी बन कर दृष्टिगोचर हो जाते हैं ।
शास्त्रीय भाषा में इसे यो कहा जा सकता है हाइड्रोजन और ऑक्सीजन के रूप में पुद्गल सूक्ष्म पर्यायरूप परिणमन कर रहे थे । वे अब जल के रूप में स्थूल पर्यायरूप परिणमन करने लगे हैं ।
आगम वचन
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सद्दव्वं वा ।
भगवती, श. ८, उ. ९, सप्तदद्वार
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