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आस्रव तत्त्व विचारणा २६९ अजीवाधिकरण के भेद -
निर्वर्तनानिक्षेपसंयोगनिसर्गा द्विचतुर्द्वित्रिभेदा : परम् ।१०।
(परं दूसरा) अजीवाधिकरण के (१) निर्वर्तना (२) निक्षेप (३) संयोग और (४) निसर्ग-यह चार भेद हैं तथा इनके अनुक्रम से. दो, चार दो और तीन यह उत्तरभेद होते हैं. )
विवेचन - निर्वर्तनाधिकरण दो प्रकार का, निक्षेपाधिकरण चार प्रकार का, संयोगाधिकरण दो प्रकार का तथा निसर्गाधिकरण तीन प्रकार का होता है । इस प्रकार अजीवाधिकरण कुल ११ प्रकार का होता है । __इन ११ अजीवाधिकरणों का संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है -
(१) निर्वर्तना अधिकरण - का अभिप्राय रचना करना अथवा उत्पन्न करना है । इसके दो प्रकार है -
(क) देहदुःप्रयुक्तनिर्वर्तनाधिकरण - इसका अभिप्राय है- काय अथवा शरीर का दुष्प्रयोग कु चेष्टा करना । और (ख) उपकरण निर्वर्तनाधिकरण- का अभिप्राय हिंसा के उपकरण शस्त्र आदि की रचना अथवा निर्माण करना । .
(२) निक्षेप का अभिप्राय रखना अथवा धरना है- इसके चार भेद है -
(क) सहसा निक्षेपाधिकरण - भय से अथवा शीघ्रता के कारण पुस्तक, शरीर अथवा शरीर मल (मल-मूत्र, श्लेष्म आदि) को सहसा ही अविवेकपूर्वक इधर-उधर फैंक देना, उत्सर्जन - विसर्जन कर देना । ।
(ख) अनाभोगनिक्षेपाधिकर - शीघ्रता अथवा भय न होने पर भी जीव-जन्तुओं की उपस्थिति का विचार न करके पुस्तक आदि वस्तुओं को रख देना अथवा उचित स्थान पर न रखकर इधर-उधर रख देना ।
(ग) दुःप्रमृष्टनिक्षेपाधिकरण - प्रमार्जन किये बिना अथवा अयतना से पुस्तक आदि उपकरणों को इधर-उधर रख देना ।
(घ) अप्रत्यवेक्षितानिक्षेपाधिकरण - बिना देखे ही वस्तुओं को रख देना ।
(३) संयोगाधिकरण - संयोग का अभिप्राय जोड़ना अथवा मिलाना है । संयोगाधिकरण के दो भेद है -
(क) उपकरण संयोजना - शीत के कारण ठण्डे हुए अपने शरीर अथवा पात्र आदि को धूप में गर्म हुए रजोहरण से पौंछना, शोधना ।
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