________________
२९८ तत्त्वार्थ सूत्र : अध्याय ७ : सूत्र ३.
वस्तुतः आहार इसीलिए शरीर को दिया जाता है कि संयम का पालन सुचारू रूप से होता रहे । इसके लिए शुद्ध आहार बहुत आवश्यक है । ___ आधुनिक वैज्ञानिक खोजों के अनुसार मस्तिष्कीय तंत्रिका संप्रेषकों (न्यूरोट्रांसमीटर) तथा सेरोटोनिन पदार्थ मानव के सम्पूर्ण आवेगों तथा क्रियाकलापों को नियंत्रित संतुलित करते हैं । शुद्ध आहार द्वारा इनका निर्माण स्वच्छता भरा होता है तो मानव के आवेगों की दिशा भी उन्नति की ओर रहती है, कर्म-क्रियाओं में मन अधिक स्थिर होता है । इसलिए भी शुद्ध आहार अपेक्षित है ।
(४) आदान निक्षेपण समिति - इसका अभिप्राय है किसी वस्तु उपकरण आदि को भली-भाँति देखभाल कर उठाना और रखना, जिससे किसी प्राणी की विराधना न हो और उपकरण आदि भी अधिक समय तक सुरक्षित रहें । उपकरण उठाने-रखने में किसी जीव की विराधना न हो सतत ऐसा चिन्तन रखना आदान निक्षेपण समिति भावना है ।।
(५) आलोकित पान भोजन - का अभिप्राय है सूर्य के प्रकाश में ही भोजन पान से निवत्त हो जाना, सूर्यास्त होने के बाद कुछ भी खाने और पीने की भावना न रखना आलोकित पान-भोजन भावना है ।।
अंधकार में भोजन-पान से जीवों की विराधना तो होती ही है, साथ ही अपने स्वयं के स्वास्थ्य पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, विषैला जन्तु आने से अनेक प्रकार के रोग हो सकते हैं ।
अतः अहिंसाव्रत के साधक को यह पाँच भावनाएँ भानी चाहिए जिससे उसका व्रत स्थिर रहे ।
प्रश्नव्याकरण (संवर द्वार) सूत्र में भी अहिंसाव्रत की पाँच भावनाएँ बताई हैं । वहाँ आलोकित पान भोजन की, जगह वचन समिति भावना कही है । वचन-समिती से अभिप्राय है -पापकारी, तीखा, कटाक्षयुक्त वचन न बोलना। ऐसे वचन से अन्य को दुःख होता है, इस अपेक्षा से वह हिंसा ही है । अतः अहिंसाव्रत के साधक को सदा वचन समिति की भावना का चिन्तन करना चाहिए ।
__आचारांग सूत्र (श्रु. २, अ. १५) में पाँच भावनाएँ इस प्रकार हैं - (१) ईर्यासमिति भावना (२) मन को सम्यदिशा में प्रयुक्त करना- मनःसमिति (३) वचनसमितिभावना (४) आदान, भाण्ड-मात्र निक्षेपणा समिती और (५) आलोकित पान-भोजन ।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org