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३३० तत्त्वार्थ सूत्र : अध्याय ७ : सूत्र २१-२२
(५) साकारमंत्रभेद - पिशुनता (चुगली खाना), दुष्ट भाव से गुप्त मंत्रणा का भंडाफोड़ करना ।
आगम में 'सदारमंत्रभेद' शब्द है, जिसका तात्पर्य है -
पति-पत्नी द्वारा-एक दूसरे के गुप्त भेद या रहस्य प्रकट करना । इनसे कुटुम्ब के कलह आदि की वृद्धि हो सकती है, अनर्थ भी हो सकता है । आगम वचन -
थूलगस्स अदिण्णादाणस्स पंच अइयारा 'जाणियव्वा न समायरियव्वा, तं जहा-तेनाहडे तक्करप्पओगे विरुद्धरज्जाइकम्मे कूडतुल्ल कूडमाणे तप्पडिरूवगववहारे । - (उपा. अ. १)
(स्थूल चोरी के पाँच अतिचार जानने योग्य हैं, आचरण करने योग्य नहीं हैं; यथा -१. चोरी का माल लेना .२ चोरी के उपाय बताना ३. राज्य के विरुद्ध कार्य करना ४. माप और तोल कम-अधिक रखना और ५. मिलावट करना । अचौर्याणुव्रत के अतिचार -
स्तेनप्रयोगतदाहृतादानविरुद्धराज्यातिक्र महीनाधिकमानोन्मान प्रतिरूपकव्यवहारा : ।२२।
१. चोरी के उपाय बताना २. चोरी का माल लेना ३. विरुद्ध (विरोधी) राज्य का अतिक्रम करना ४. तौल-माप के पैमाने कम-अधिक रखना और ५. मिलावट (असली में नकली वस्तु मिला देना) करना - यह पाँच अचौर्याणुव्रत के अतिचार है ।
विवेचन - अचौर्याणुव्रत के इन पाँच अतिचारों का संक्षिप्त परिचय यह
(१) स्तेन प्रयोग -चोरी के उपाय बताना अथवा किसी अन्य को चोरी की प्रेरणा देना या दिलवाना ।
(२) तदाहृतादान - चौरी की वस्त को लोभवश खरीद लेना ।
(३) विरुद्धराज्यातिक्रम - राज्य द्वारा निर्धारित आयात-निर्यात संबंधी नियमों का उल्लंघन करना, तत्सम्बन्धी कर न चुकाना अथवा कम कर चुकाना । साथ ही जो अपने राज्य के विरोधी राज्य (देश) हैं; उनमें चोरी छिपे जाना । वहां से तस्करी का माल लाकर अपने देश में बेचना अथवा अपने देश का माल उन देशों में बेचना ।
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