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आचार-(विरति-संवर) ३३७ (देशावकासिक व्रत के पाँच अतिचार यह हैं - (१) आनयनप्रयोग (२) प्रेष्यप्रयोग (३) शब्दानुपात (४) रूपानुपात और (५) बहिःपुद्गल प्रक्षेप।) देशावकाशिकव्रत के अतिचार
आनयनप्रेष्यप्रयोगशब्दरूपानुपातपुद्गलक्षेपाः ।२६।
१. आनयनप्रयोग २. प्रेष्यप्रयोग ३. शब्दानुपात ४. रूपानुपात और ५. पुदगल प्रक्षेप - यह पाँच देशावकाशिकव्रत के अतिचार है ।
विवेचन - प्रस्तुत व्रत के अतिचारों का संक्षिप्त स्वरूप इस प्रकार
(१) आनयनप्रयोग - सीमा से बाहर की किसी वस्तु को अन्य व्यक्ति द्वारा मँगवा लेना और (२) किसी वस्तु को बाहर भेज देना प्रेष्यप्रयोग है । (३) शब्दानुपात का अभिप्राय खाँसने-खखारने आदि शब्दों द्वारा निश्चित सीमा से बाहर अपना अभिप्राय बता देना तथा (४) संकेत आदि द्वारा काम निकाल लेना रूपानुपात है । पुद्गल प्रक्षेप का आशय है मर्यादित क्षेत्र से बाहर कंकड़ आदि फेंककर अपना काम निकाल लेना । आगम वचन -
अणठ्ठदण्डवेरमणस्स समणोवासएणं पंच अइयारा ... तं जहाकंदप्पे कुक्कुइए मोहरिए सुंजत्ताहिगरणे उपभोगपरिभोगाइरित्ते ।
- उपासकदशा, अ. १ (अनर्थदण्डविरमणव्रत के पाँच अतिचार है - (१) कन्दर्प (२) कौत्कुच्य (३) मौखर्य (४) संयुक्ताधिकरण और (५) उपभोग परिभोगातिरिक्त।) अनर्थदण्ड विरमणव्रत के अतिचार -
कन्दपकौत्कुच्यमौखर्यासमीक्ष्याधिकरणोपभोगाधिकत्वानि । २७ ।
(१) कन्दर्प (२) कौत्कुच्य (३) मौखर्य (४) असमीक्ष्याधिकरण (५) उपभोग-परिभोगातिरिक्त यह पाँच अनर्थदण्डविरतिव्रत के अतिचार है ।
विवेचन - अनर्थदण्ड का अभिप्राय है -निष्प्रयोजन सावध अथवा पापकारी प्रवृत्ति करना । इसके पाँच अतिचारों का स्वरूप निम्न प्रकार है -
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