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३२८ तत्त्वार्थ सूत्र : अध्याय ७ : सूत्र १९-२० नींव है अतः सम्यक्त्व के यह अतिचार महाव्रती और अणुव्रती-दोनों प्रकार के साधकों के लिए सामान्य रूप से बताये गये हैं। . आगम वचन -
थूलगस्स पाणाइवायवेरमणस्स समणोवासएणं पंच अइयारा पेयाला जाणियव्वा न समायरियव्वा, तं जहा-वह-बंध च्छविच्छेए-अइभारेभत्तपाणवोच्छेए ।
... - उपासकदशांग , अ. १ (स्थूलहिंसा का त्याग करने वाले श्रमणोपासक (श्रावक) को पांच प्रधान अतिचार जानने चाहिए, आचरणनहीं करने चाहिए) यथा १. वध (मारना) २. बाँधना, ३. शरीर छेदना ४. अत्यधिक बोझा लादना ५. अन्न-पानी न देना।) अहिंसाणुव्रत के अतिचार -
व्रतशीलेषु पंच पंच यथाक्रमम् । १९। बन्ध वध-च्छविच्छेदाऽतिभारारोपणाऽन्नपान निरोधाः ।२०।
व्रत (अहिंसा आदि ५ मूलव्रत - अणुव्रत) और शील (सात उत्तर व्रतशीलव्रत) के भी क्रम से पाँच-पाँच अतिचार है ।
१. बन्ध २. वध ३. छविच्छेद ४. अतिभारारोपण और ५. अन्न-पानी रोक देना-अहिंसाणुव्रत के यह पाँच अतिचार है ।
विवेचन - प्रस्तूत सूत्र १९ में यह सूचन किया गया है कि श्रावक के सभी व्रतों के पाँच-पाँच अतिचार है और सूत्र २० में प्रथम अहिंसाणुव्रत के पांच अतिचार बताये हैं -
(१) बंध - किसी त्रस प्राणी को बंधन में बांधना, अथवा पिंजड़े में डालना जिससे वह स्वेच्छापूर्वक गमनागमन न कर सके । अपने अधीनस्थ सेवक को निर्दिष्ट समय के बाद उसकी इच्छा के विपरीत रोकना भी बंध (बंधन) अतिचार है ।
(२) वध - किसी भी प्राणी को डंडे आदि से मारना, घात या प्रहार करना ।
(३) छविच्छेद - किसी प्राणी के अंगोपांग काटना ।
(४) अतिभार - बैल आदि पर उसकी शक्ति से अधिक भार लादना तथा अधीनस्थ कर्मचारी से उसकी शक्ति से अधिक कार्य करवाना, अतिभारारोपण
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