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आचार - (विरति - संवर)
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(५) अन्न - पाननिरोध
अपने अधीनस्थ पशु तथा परिवारीजनों और सेवकों को समय से भोजन - पानी आदि न देना, उसमें रोड़ा अटका देना आदि ।
आगम वचन
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थूलगस्समुसावायस्स पंच अइयारा जाणियव्वा न समायरियव्वा, तं जहा - सहसभक्खाणे रहस्सब्भक्खाणे सदारमंतभेए मोसोवएसे कूडलेहकरणे ।
उपासकदशांग, अ.१
(स्थूल झूठ के पाँच अतिचार जानने योग्ये हैं, आचरण करने योग्य नहीं, यथा १. बिना सोचे-विचारे सहसा ही कह देना २ गुप्त बात प्रगट कर देना . ३ अपनी स्त्री का गुप्त भेद प्रगट कर देना ४. झूठ बोलने का उपदेश देना और ५. झूठे दस्तावेज लिखना । )
सत्याणुव्रत के अतिचार
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मिथ्योपदेशरहस्याभ्याख्यानकू टले खक्रि यान्यासापहार
साकारमंत्रभेदाः
।२१। .
१. मिथ्या उपदेश देना २. गुप्त बात कह देना. ३ झूठे लेख बनाना, ४. धरोहर हजम कर जाना और ५. गुप्त मंत्रणा का भंडाफोड़ कर देना यह सत्याणुव्रत के पाँच अतिचार है ।
विवेचन - सत्याणुव्रत के पाँच अतिचारों का संक्षिप्त परिचय यह है(१) मिथ्योपदेश - झूठी बातों से बहकाकर किसी को मिथ्या मार्ग ( कुमार्ग) पर लगाना ।
(३) कूटलेखक्रिया निन्दा लिखना / छापना ।
(२) रहस्याभ्याख्यान
विनोद या हास्य आदि भावना से किसी का गुप्त रहस्य या मर्म प्रगट कर देना अथवा दोषारोपण करना ।
जाली दस्तावेज बनाना, किसी की झूठी
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(४) न्यासापहार किसी की रखी हुई धरोहर को हजम कर जाना। यदि वह भूल से कम बता दे (जैसे, रखे हों हजार रुपये और भूल से कह दे पाँच सौ रुपये रखे थे) तो कह देना इतने ही होंगे, तुम बता रहे हो उतने ही ले जाओ । इस प्रकार बाकी के पाँच सौ रुपये हजम कर जाना भी न्यासापहार है ।
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