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३१२ तत्त्वार्थ सूत्र : अध्याय ७ : सूत्र ८
भावहिंसा
वह है जबकि मन-वचन-काया तीनों योग हिंसा में जुड़े हों, यानी तीनों योगों की प्रवृत्ति हिंसा रूप हो । जैसे- कसाई द्वारा बकरे का
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वध ।
द्रव्यहिंसा वह है जहाँ हिंसारूप परिणाम (भाव) न हों, किन्तु अकस्मात् ही किसी का वध हो जाय, कोई मर जाय, जैसे डाक्टर किसी रोगी की कैंसर की गाँठ निकालने के लिए आपरेशन करता है, चीर-फाड़ करता है, उसकी भावना रोगी की जीवन-रक्षा हैं; किन्तु रोगी मर जाता तो यह द्रव्यहिंसा है ।
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इसी प्रकार कोई श्रमण या श्रावक अच्छी तरह देखभाल कर चल रहा है, उसने देख लिया कि सड़क पर कोई जीव नहीं हैं; किन्तु अकस्मात् कोई चींटी उसके पाँव के नीचे आकर दब जाती है, मर जाती है तो हिंसा रूप भाव न होने से यह द्रव्यहिंसा है ।
उपरोक्त दोनों दृष्टान्तों में हिंसा का दोष नहींवत् है ।
बहुत से अहिंसा के स्वरूप से अनजान व्यक्ति इस प्रकार की शंकाएँ उठाते हैं कि - श्वासोच्छ्वास से असंख्य वायुकायिक जीवों की विराधना होती है तो श्रमण - साधु भी अहिंसक नहीं है ।
उनके इस आक्षेप का निरसन भी उपरोक्त वर्णन से हो जाना चाहिए कि साधु के भाव हिंसा के नहीं है, फिर श्वासोच्छ्वास तो जीवन की / शरीर की स्वाभाविक प्रक्रिया है, इसे रोका नहीं जा सकता, इसे रोकने का अर्थ है आत्महत्या, जो स्वयं हिंसा है । अतः श्वासोच्छ्वास लेता हुआ साधु अहिंसक ही कहा जायेगा ।
आगम वचन
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अलिय .... असच्चं .. संधत्तणं. असम्भव
अलियं ।
प्रश्न व्याकरण, आस्रव द्वार २
प्रश्न व्याकरण, आस्रव द्वार ३
प्रश्नव्याकरण, आस्रव द्वार ४ दशवैकालिक अ. ६, गा. २१ असत्य है ।
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अदत्तं. ते णिक्को
अबम्भ मेहुणं मुच्छा परिग्गहो
( जैसा न हो वैसा स्थापित करना बिना दिये हुए को लेना चोरी है मैथुन करना अब्रह्म पाप कहलाता है ।
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