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३२४ तत्त्वार्थ सूत्र : अध्याय ७ : सूत्र १७
(३) पौषधोपवास व्रत - आहार, शरीर-श्रृंगार, व्यापार आदि सभी कार्यों को त्यागकर एक दिन-रात (अष्ट प्रहर) तक उपाश्रय आदि शांत स्थान में रहकर धर्मचिन्तन, आत्मगुणो का चिन्तवन, पंच परमेष्ठी गुण स्मरण करना पौषधोपवास व्रत है ।
पौषध का शाब्दिक अर्थ है -धर्म-साधना को पुष्ट करने वाला व्रत इसके चार रूप बताये है -
१. आहार पौषध - आहार का त्याग करं पौषध करना ।
२. शरीर पौषध - शरीर के प्रति ममत्व व उसकी साज-सज्जा आदि को छोड़ना, शरीर-निरपेक्ष होना ।।
३. ब्रह्मचर्य पौषध-ब्रह्मचर्य का पालन करना । . ४. अव्यापार पौषध- व्यापार आदि से निवृत्त होकर निर्दोष निश्चिन्त हो, धर्माराधना करना ।
जैसा कि कहा हैआहार-तनु सत्काराऽब्रह्म सावध कर्मणाम् । त्यागः पर्व चतुष्टय्या तद्विदुः पौषध व्रतम् ॥ - (आवश्यक वृत्ति)
अष्टमी, चतुदर्शी, पूर्णिमा एवं अमावस्या- इन चारों पर्व तिथियों में आहार, शरीर, अब्रह्मचर्य तता सावध कर्म का त्याग करना- पौषध है । अर्थात् चारों का सम्मिलित रूप ही पौषध है ।
(४) अतिथि संविभाग व्रत - द्वार पर आये अतिथि (त्यागी) को अपने न्यायोपार्जित धन में से विधिपूर्वक आहार आदि देना ।
यह व्रती श्रावक के बारह व्रत हैं। आगम वचन - अपच्छिमा मारणं तिआ संलेहणा जूसणाराहणा ।
___ - औपपा. सूत्र ५७ (अन्तिम समय (मृत्यु के समय) संलेखना की आराधना करें ।) अन्तिम समय की आराधना -
मारणान्तिकी संलेखनां जोषिता ।१७। (मरण के समय संलेखना की आराधना करे।)
विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में अन्तिम समय की आराधना का संकेत है। जब कालज्ञान, शरीर की घोर अशक्तता, असाध्य रोग, उपसर्ग आदि किसी
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