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आचार-(विरति-संवर) ३१३ चेतन-अचेतन रूप परिग्रह में ममत्व भाव रूप मूर्छा परिग्रह है । असत्य आदि के लक्षण -
असद्भिधानमनृतम् ।। अदत्तादानं स्तेयं ।१०। मैथुनमब्रह्म ।११। मूर्छा परिग्रहः ।१२। असत् को स्थापित करना/कहना अनृत (अन्:ऋत) असत्य है ।९। (स्वामी द्वारा) बिना दिये हुए किसी वस्तु को लेना चोरी है।१०। (स्त्री-पुरूष के) मिथुनभाव अथवा/मिथुन कर्म मैथुन/अब्रह्म है ।११। (वस्तुओं में) ममत्व भाव (मूर्छा) रखना परिग्रह है । १२।
विवेचन - प्रस्तुत ९ से १२ तंक के चार सूत्रों में असत्य, स्तेय, अब्रह्म और पररिग्रह के लक्षण बताये गये है ।
असत्य - इसके लिए सूत्र में अनृत शब्द दिया गया है ऋत का अभिप्राय है जो सरल हो, सत्य हो, त्रिकाल अबाधित हो । जो ऋत है, वह 'सत्' है । यद् ऋतं तत् सत् । इसके विपरीत 'असत्' है । असत् का अभिधान/स्थापन करना असत्य है ।
सत् शब्द के प्रस्तुत संदर्भ में अर्थ हैं - (१) विद्यमान और (२.) प्रशंसा । इस प्रकार सूत्रोक्त असत् शब्द से तीन अर्थ प्रतिमासित होते हैं - (१) विद्यमान अथवा सद्भाव का निषेध करना (२) अर्थान्तर करना और (३) निन्दा अथवा अप्रशस्त वचन बोलना ।
सद्भाव अथवा सत्य स्थिति के विपरीत कहना, उसका अन्य अर्थ कर देना, कुछ का कुछ बता देना, आदि सभी विद्यमान के निषेध तथा उसके अर्थान्तर होने से असत्य वचन हैं ।
प्रशस्त से अभिप्राय है- प्रिय और हितकारी वचन । ऐसे वचन जो सत्य होते हुए भी दूसरे के हृदय को दुःखी करें, अप्रशस्त होने से असत्य वचन ही हैं. कटु, कर्कश, निंद्य आदि वचन भी असत्य की कोटिं में ही हैं।
स्तेय - स्वामी द्वारा बिना दिये हुए उसकी वस्तु को उठा लेना, ग्रहण कर लेना, स्तेय अथवा चोरी है ।
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