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आस्रव तत्त्व विचारणा
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( चार प्रकार से जीव मनुष्यायु का बन्ध करते हैं - ( १ ) उत्तम भद्रसरल स्वभाव होने से । (२) स्वभाव में विनय भाव होने से । (३) दयालु स्वभाव होने से । (४) स्वभाव में ईर्ष्याभाव न होने से ।)
मनुष्यायु के आस्त्रद्वार ( बन्धहेतु )
अल्पारंभपरिग्रहत्वं स्वभावमार्दवार्जवं च मानुषस्यायुषः ।१८।
(१) अल्प आरम्भ, (२) अल्पपरिग्रह, (३) स्वभाव की कोमलता (निरभिमानता) और (४) सरलता (ऋजुता ) यह मनुष्य आयु के बन्ध हेत
है ।
विवेचन
मनुष्यायु बन्ध के चार कारणों में पहला कारण है अल्पआरम्भ, अल्पपरिग्रह जिस प्रकार 'बहु' का अर्थ परिग्रह की विपलुता के साथ 'ममत्व भाव' की तीव्रता से भी है, बल्कि मुख्यता ममत्व - आसक्ति की है । उसी प्रकार अल्पशब्द भी वस्तु की अल्पता का द्योतक न होकर 'ममत्व' की 'अल्पता' का ही द्योतक है । यद्यपि सामाजिक स्थिति मर्यादा के अनुसार व्यक्ति को परिग्रह की भी मर्यादा- अल्पता करना आवश्यक है, किन्तु उससे भी मानसिक वृत्तियों में परिग्रह के प्रति ममता की अल्पता आनी चाहिए । इसी प्रकार आरम्भ (हिंसा क्रूरता ) में भी भावात्मक अल्पता आना जरूरी है।
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मूल आगम में चार कारणों के नाम कुछ भिन्न हैं - वहाँ प्रकृति भद्रता अर्थात् स्वभावगत सरलता और स्वभावगत विनीतता का अभिप्राय हैसरलता और विनीतता दिखावटी न हो, किन्तु हृदय की सहज हो । ईर्ष्यालु न होकर गुणानुरागी होना और दयालु होना भी सरलता - ऋतुजा में समाविष्ट हो जाता है ।
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आगम वचन
एगंतबाले णं मणुस्से नेरइयाउयंपि पकरेइ तिरियाउयंपि पकरेइ मणुस्साउयं पिपकरेइ देवाउयं पि पकरेइ ।
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भगवती श. १, उ.८, सूत्र ६३
(एकान्त बाल (ज्ञान एवं व्रत रहित) मनुष्य नरक आयु भी बाँधता है, तिर्यंच आयु भी बांधता है, मनुष्य आयु भी बांधता है और देवायु भी बाँधता है ।
चारों आयुय के सामान्य बंध हेतु - निःशीलव्रतत्वं च सर्वेषाम् ।१९।
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