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२९२ तत्त्वार्थ सूत्र : अध्याय ६ : सूत्र २६ नारकियों का आयुबन्ध आयु समाप्ति के एक अन्तर्मुहूर्त से आवलिका काल तक में होता है ।
आयुबन्ध का समय - आयुबन्ध लागातार नहीं होता । यह आठ समय में होता है । जिस प्रकार गाय रुक-रुककर पानी पीती है, उसी प्रकार आत्मा भी आयु का बन्ध करती है । जैसे प्रथम समय में कुछ बन्ध कर लिया, फिर रुक गई; इस तरह बीच-बीच में रुकते हुए आयु का बन्ध होता है।
किन्तु इससे यह न समझना चाहिए कि आयुबन्ध में एकाध घण्टा लग जाता होगा । समय बहुत छोटी काल इकाई है । असंख्यात समय की तो एक आवलिका होती है, वह भी एक सेकण्ड के समय में अनेकों गुजर जाती है। अतः यह समझना चाहिए कि संपूर्ण आयुबन्ध (रुक-रुक कर होते हुए भी) सेकण्ड के असंख्यातवें भाग में पूरा हो जाता है ।
शास्त्रकार का कथन है कि परलोक की आयु का बन्ध किस समय होगा, कुछ पता नहीं चलता, इसलिए प्राणी को प्रत्येक क्षण शुभ और श्रेष्ठ भावों में बिताना चाहिए ।
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