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२५० तत्त्वार्थ सूत्र : अध्याय ५ : सूत्र ३२-३६
इस प्रकार गुण और पर्यायों की विभाजक रेखा स्थायित्व-अस्थायित्व नहीं है, अपितु सहभावी और क्रमभावी है । दूसरी रेखा है- उत्पत्ति की। पर्यायों की उत्पत्ति होती है, जो पर्याय पहले नहीं थी, वह उत्पन्न हो जाती है, जबकि गुण नये उत्पन्न नहीं होते, जितने द्रव्य में होते हैं, उतने ही रहते
हैं ।
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साथ ही एक-एक गुण की अनन्त पर्यायें सम्भव है ।
गुण भी द्रव्य में अनन्त होते हैं, जीव की अपेक्षा | `किन्तु छद्मस्थ के ज्ञान में सभी गुण नहीं आ पाते । आत्मा के ज्ञान - दर्शन - वीर्य आदि कुछ गुणो को ही वह जान पाता है ।
यह सब वर्णन भेद दृष्टि से है; किन्तु अभेद दृष्टि से तो द्रव्य गुण पर्यायात्मक ही है ।
आगम वचन
छव्विहे दव्वे पण्णत्ते, तं जहा
धम्मत्थिकाए, अधम्मत्थिकाए, आगासत्थिकाए, जीवत्थिकाए, पुग्गलत्थिकाए, अद्धासमये अ, से त दव्वणा ।
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अनुयोगद्वार सूत्र द्रव्यगुणपर्यायनाम सूत्र १२४ ( द्रव्य छह प्रकार के कहे गये हैं। धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय, जीवास्तिकाय पुद्गलास्तिकाय और अद्धासमय (काल) ।) भगवती, शतक २५ उ. ५, सूत्र ७४७
अणंता समया । ( कालद्रव्य में अनन्त समय होते है ।)
काल का वर्णन
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कालश्चेत्येके । ३८ |
सोऽनन्तसमय : । ३९ ।
कोई-कोई आचार्य कहते है कि काल भी द्रव्य है ।
वह (काल) अनन्त समय वाला है ।
विवेचन
प्रस्तुत दो सूत्रों मे काल का वर्णन किया गया है ।
आगमों में काल के दो रूप बताये गये हैं, (१) निश्चयकाल और (२) व्यवहारकाल । वह निश्चय काल समय के रूप में अनन्त है । इसी आधार पर सूत्र में काल को अनन्त समय वाला कहा है ।
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