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अजीव तत्त्व वर्णन
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( द्रव्य गुणों के आश्रित होता है, गुण भी एक द्रव्य के आश्रित होते हैं । किन्तु पर्याय द्रव्य और गुण दोनों के आश्रित होती है। सारांश यह कि द्रव्य में गुण और पर्याय दोनों होते हैं ।)
द्रव्य का लक्षण
गुणपर्यायवद् द्रव्यं । ३७ ।
( द्रव्य में गुण और पर्याय होते हैं ।)
विवेचन
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प्रस्तुत सूत्र में द्रव्य का लक्षण दिया गया है कि द्रव्य
में गुण और पर्याय दोनों होते हैं ।
गुण शक्तिविशेष को कहते हैं और भावान्तर तथा संज्ञान्तर को पर्याय कहा जाता है । साथ ही जिसमें गुण और पर्याय दोनों रहते हैं, वह द्रव्य कहलाता है I
पर्यायों की उत्पत्ति गुणों के परणिमन से भी होती है; जैसे आत्मा के ज्ञान गुण के परिणमन से मतिज्ञान आदिं रूप पर्यायें बनती है ।
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वैसे गुण द्रव्य में सदैव रहते हैं, सहभावी होते हैं; यथा- आत्मा के ज्ञान, दर्शन, चारित्र आदि गुण पर्यायें क्रमभावी होती है । कोई भी एक पर्याय द्रव्य में सदा काल स्थायी नहीं रहती; जैसे आत्मा की क्रोध आदि कषाय रूप परिणति तथा पर्याय । यह चिरस्थायी नहीं है ।
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इसी प्रकार पुदगल के रूप, रस, गन्ध, स्पर्श गुण स्थायी है, सहभावी है किन्तु घट, पट आदि पर्यायें क्रमभावी है, चिरस्थायी नहीं है, बदलती रहने वाली है ।
पर्यायों की परिवर्तनशीलता का एकान्त अर्थ क्षणिकवादिता समझना उचित नहीं है । इसमें निश्चय और व्यवहार दृष्टि से विभेद करना अपेक्षित
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मनुष्य पर्याय को ही लें । एक जीव जब से माता के गर्भ में आता है और जब तक मृत्यु को प्राप्त होता है, उसकी मनुष्य पर्याय होती है । किन्तु इसमें शिशु अवस्था, बाल्यावस्था, किशोरावस्था, तरुणावस्था, युवापन, प्रौढ़ता, वृद्धत्व आदि अनेक पर्यायें पलटती रहती हैं । इन्हें अवान्तर पर्याय अथवा पर्याय के अन्तर्गत पर्याय कहा जाता है
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साथ ही जीव की सिद्ध पर्याय ऐसी पर्याय है जो एक बार प्राप्त होने पर कभी पलटती नहीं, अनन्त काल तक रहती है ।
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