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________________ अजीव तत्त्व वर्णन २४९ ( द्रव्य गुणों के आश्रित होता है, गुण भी एक द्रव्य के आश्रित होते हैं । किन्तु पर्याय द्रव्य और गुण दोनों के आश्रित होती है। सारांश यह कि द्रव्य में गुण और पर्याय दोनों होते हैं ।) द्रव्य का लक्षण गुणपर्यायवद् द्रव्यं । ३७ । ( द्रव्य में गुण और पर्याय होते हैं ।) विवेचन E प्रस्तुत सूत्र में द्रव्य का लक्षण दिया गया है कि द्रव्य में गुण और पर्याय दोनों होते हैं । गुण शक्तिविशेष को कहते हैं और भावान्तर तथा संज्ञान्तर को पर्याय कहा जाता है । साथ ही जिसमें गुण और पर्याय दोनों रहते हैं, वह द्रव्य कहलाता है I पर्यायों की उत्पत्ति गुणों के परणिमन से भी होती है; जैसे आत्मा के ज्ञान गुण के परिणमन से मतिज्ञान आदिं रूप पर्यायें बनती है । । वैसे गुण द्रव्य में सदैव रहते हैं, सहभावी होते हैं; यथा- आत्मा के ज्ञान, दर्शन, चारित्र आदि गुण पर्यायें क्रमभावी होती है । कोई भी एक पर्याय द्रव्य में सदा काल स्थायी नहीं रहती; जैसे आत्मा की क्रोध आदि कषाय रूप परिणति तथा पर्याय । यह चिरस्थायी नहीं है । 1 इसी प्रकार पुदगल के रूप, रस, गन्ध, स्पर्श गुण स्थायी है, सहभावी है किन्तु घट, पट आदि पर्यायें क्रमभावी है, चिरस्थायी नहीं है, बदलती रहने वाली है । पर्यायों की परिवर्तनशीलता का एकान्त अर्थ क्षणिकवादिता समझना उचित नहीं है । इसमें निश्चय और व्यवहार दृष्टि से विभेद करना अपेक्षित 1 मनुष्य पर्याय को ही लें । एक जीव जब से माता के गर्भ में आता है और जब तक मृत्यु को प्राप्त होता है, उसकी मनुष्य पर्याय होती है । किन्तु इसमें शिशु अवस्था, बाल्यावस्था, किशोरावस्था, तरुणावस्था, युवापन, प्रौढ़ता, वृद्धत्व आदि अनेक पर्यायें पलटती रहती हैं । इन्हें अवान्तर पर्याय अथवा पर्याय के अन्तर्गत पर्याय कहा जाता है Jain Education International साथ ही जीव की सिद्ध पर्याय ऐसी पर्याय है जो एक बार प्राप्त होने पर कभी पलटती नहीं, अनन्त काल तक रहती है । For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004098
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKevalmuni, Shreechand Surana
PublisherKamla Sadhanodaya Trust
Publication Year2005
Total Pages504
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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