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२४८ तत्त्वार्थ सूत्र : अध्याय ५ : सूत्र ३२-३६
इसीप्रकार अधिक रूक्ष गुण वाले पुद्गल जब कम स्निग्ध गुण वाले पुद्गल के साथ बन्धन करेंगे तो उनसे निर्मित स्कन्ध में रूक्ष गुण प्रधान होगा।
किन्तु समान रूक्ष और स्निग्ध गुण वाले पुद्गल जब परस्पर बन्धन को प्राप्त होते हैं तो उनसे निर्मित स्कन्ध कभी रूक्षगुणप्रधान होता है तो कभी स्निग्धगुणप्रधान और कभी-कभी उस. स्कन्ध में रूक्षता और स्निग्धता दोनों ही समान मात्रा में होती है ।
बन्ध के विषय में दिगम्बर और श्वेताम्बर मान्यता में मतभेद है । जानकारी के लिए हम दोनों मान्यताएँ दे रहे हैं ।
__ भाष्यवृत्ति (श्वेताम्बर) मान्यता के अनुसार बन्ध गुण
सदृश विसदृश १. जघन्य+जघन्य
नहीं नहीं २. जघन्य+एकाधिक
नहीं है । ३. जघन्य+द्विअधिक ४. जघन्य+त्रि-अधिक ५. जघन्येतर+समजघन्येतर ६. जघन्येतर+एकाधिक जघन्येतर
नहीं है ७. जघन्येतर+द्विअधिक जघन्येतर ८. जघन्येतर+त्रिअधिक जघन्येतर.
____ सर्वार्थसिद्धि-दिगम्बर परम्परा के अनुसार बन्ध गुण
सदृश विसदृश १. जघन्य+जघन्य
नहीं नहीं २. जघन्य+एकाधिक
नहीं नहीं ३. जघन्य+द्विअधिक
नहीं नहीं ४. जघन्य+त्रि-अधिक
नहीं नहीं ५. जघन्येतर+समजघन्येतर
नहीं ६. जघन्येतर+एकाधिक जघन्येतर
नहीं ७. जघन्येतर+द्विअधिक जघन्येतर ८. जघन्येतर+त्रिअधिक जघन्येतर
नहीं नहीं आगम वचन -
गुणाणमासओ दव्वं एगदव्वस्सिया गुणा । लक्खणं पज्जवाणं तु उभओ अस्सिया भवे ॥
- उत्तरा. २८/६
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