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२५४ तत्त्वार्थ सूत्र : अध्याय ५ : सूत्र ४०-४४
यह है कि जीव का इस प्रकार का परिणमन अथवा परिणाम होता हुआ अनुभव
में आता है ।
विशेष
योग दो प्रकार का होता है- १. भावयोग और २. द्रव्ययोग । भावयोग आत्मा की विशिष्ट शक्ति (योग शक्ति) है और मन-वचन-काय के निमित्त से जो आत्म- प्रदेशों में परिस्पन्दन होता है, उसे द्रव्ययोग कहा जाता है । प्रस्तुत सूत्र ४४ में योग से द्रव्ययोग समझना चाहिए ।
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