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२४० तत्त्वार्थ सूत्र : अध्याय ५ : सूत्र २३-२८ रूप से मधुर रस के भी अनेक भेद होते हैं, कम मीठा, अधिक मीठा आदि और इस कम और अधिक मीठे में भी असंख्यात प्रकार का तरतमभाव होता
यही स्थिति स्पर्श, गन्ध, वर्ण आदि की भी है ।
पुद्गलों के पर्याय सूत्र २४ में पुद्गलों के असाधारण पर्याय बताये गये हैं । इनका परिचय इस प्रकार हैं ।
(१) शब्द - ध्वनि अथवा जिसके द्वारा अर्थ का प्रतिपादन होता है, वह शब्द है । इसके दो प्रकार है वैस्त्रसिक (प्राकृतिक - जैसे बादलों की गर्जना) और प्रयोगज -प्रयत्नजन्य । (प्रयोगज के -तत, वितत, घन, शुषिर, संघर्ष, और भाषा-छह मुख्य भेद हैं ।
(२) बन्ध - पुद्गल परमाणुओं/स्कन्धों का एकक्षेत्र अवगाह रूप में परस्पर सम्बन्ध हो जाना बन्ध है । यह शिथिल, गाढ़, प्रगाढ़, आदि अनेक प्रकार का है । इसके प्रमुख भेद तीन हैं - (१) प्रयोगबन्ध (२) विस्त्रसाबन्ध और (३) मिश्रबन्ध ।
जीव के प्रयत्न से होने वाला बन्ध प्रयोगबन्ध हैं; उदाहरणार्थ - औदारिक शरीरवाली वनस्पतियों के काष्ठ और लाख का बन्ध ।
जीव के साथ कर्म-दलिकों का जो बंध होता है, वह भी इसी श्रेणी का हैं ।
(स्वभाव से होने वाला बन्ध विस्त्रसाबन्ध कहलाता है; जैसे-बिजली, मेघ, इन्द्रधनुष आदि का बन्ध )
जीव के प्रयोग का साहचर्य रखकर जो पुद्गलों का बन्ध होता है वह मिश्रबन्ध होता है; जैसे-स्तूप, कुम्भ आदि ।
(३) सौक्षम्य - (सूक्ष्मता) इसका अभिप्राय पतलापन या लघुता है । या दो प्रकार का है - १. अन्त्य (जो सर्वाधिक सूक्ष्म हो-जैसे परमाणु)
और २. आपेक्षिक - यह द्वयणुक, त्र्यणुक आदि में होता हैं। इसका अभिप्राय है चतुरणुक की अपेक्षा त्र्यणुक सूक्ष्म है और त्र्यणुक की अपेक्षा व्यणुक ।
आपेक्षिक सूक्ष्मता असंख्यात प्रकार की है, जैसे तरबूज की अपेक्षा खरबूजा सूक्ष्म है, खरबूजे की अपेक्षा आम, आम की अपेक्षा आँवला आदि।
(४) स्थौल्य (स्थूलता) - इसका अभिप्राय है - मोटापन या गुरुता । इसके भी प्रमुख भेद दो हैं - १. अन्त्य और २. आपेक्षिक ।
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