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१७६ तत्त्वार्थ सूत्र : अध्याय ४ : सूत्र ११-१२ पैरों के तलभाग, नख, तालू, जिह्वा और ओष्ठ लाल होते हैं । इनका चिन्ह वट वृक्ष की ध्वजा है ।
यक्षिणियाँ अतीव सुन्दर होती हैं ।
प्राचीन और मध्यकाल में और अब तक भी इनकी पूजा विशेष रूप से प्रचलित हैं । अनेक यक्षों और यक्षायतनों का उल्लेख तथा अवस्थिति की चर्चा यत्र-तत्र अनेक स्थानों पर हैं । ..
[धन देवता कुबेर, लक्ष्मी आदि अनेक प्रसिद्ध देवी-देवता यक्ष जाति के ही हैं । इनके १३ उपभेद है। १. पूर्णभद्र, २. मणिभद्र ३, श्वेत भद्र, ४. हरि-भद्र, ५. सुमनोभद्र, ६. व्यतिपातिक भद्र, ७. सुभद्र, ८. सर्वतोभद्र, ९. मनुष्य यक्ष, १०. वनाधिपति, ११. वनाहार, १२. रूपयक्ष और १३. यक्षोत्तम ।
६. राक्षस - यह देखने में भयंकर होते हैं । इनका चिन्ह खट्वांग की ध्वजा है ।
इनके ७ उपभेद है - १. भीम, २. महाभीम, ३. विघ्न, ४. विनायक, ५. जलराक्षस, ६. राक्षस-राक्षस और ७. ब्रह्मराक्षस ।
७. भूत - यह श्याम वर्णवाले किन्तु सौम्य स्वभावी होते हैं । इनका रूप सुन्दर होता है । इनका चिन्ह सुलस ध्वजा है ।
इनके नौ उपभेद है - १. सुरूप, २. प्रतिरूप, ३. अतिरूप, ४. भूतोत्तम, ५. स्कन्दिक, ६. महास्कन्दिक, ७. महावेग, ८. प्रतिच्छन्न और ९. आकाशग ।
८. पिशाच - इनका रूप सुन्दर और सौम्य होता है। इनका चिन्ह कदम्ब वृक्ष की ध्वजा है ।
इनके १५ उपभेद है - १. कूष्मांड, २. पटक, ३. जोष, ४. आह्रक, ५. काल, ६. महाकाल, ७. चौक्ष, ८. अचौक्ष, ९. तालपिशाच, १०. मुखरपिशाच, १. अधस्तारक, १२. देह, १३. महाविदेह, १४. तूष्णीक और १५. वनपिशाच।
इस प्रकार व्यंतर देवों के समस्त उपभेदों की गणना करने पर (१०+१०+१०+१२+१३+७+९+१५=८६) छ्यासी भेद होते हैं ।
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