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अजीव तत्त्व वर्णन
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लेकिन रूपी अथवामूर्तिक का अर्थ चर्मचक्षुओं से दृश्यमान- दिखाई देने योग्य मानना संगत नहीं हैं; क्योंकि पुद्गलपरमाणु इतना सूक्ष्म होता है कि चर्मचक्षुओं से दृष्टिगोचर हो ही नहीं सकता । सूक्ष्म पुद्गल परमाणु तो बहुत दूर, अनन्तानन्त सूक्ष्म परमाणुओं के मेल से बना व्यवहार परमाणु भी दृष्टिगोचर नहीं होता ।'
छद्मस्थ मनुष्य चाहे जितने शक्तिशाली दूरवीक्षण और अनुवीक्षण यन्त्रों की सहायता से देखने का प्रयास करे किन्तु परमाणु ( यहाँ तक कि व्यवहार परमाणु) को भी दृष्टिगोचर करना उसकी सीमा से परे हैं । उसके ज्ञान का इतना तीव्र क्षयोपशम ही नहीं होता ।
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यह तो सिर्फ केवलज्ञानगम्य है । केवली भगवान ही उसे (परमाणु को) प्रत्यक्ष देव और जान सकते हैं ।
अतः रूपी का इतना ही आशय समझना चाहिए । जिसमें रूप, रस, गन्ध, स्पर्श हो - वह रूपी है, मूर्तिक है ।
आगम वचन
धम्मो अधम्मो आगासं दव्वं इक्विक्वकमाहियं ।
अणंताणिच य दव्वाणि कालो पुग्गलजंतवो ॥ - उत्तरा २८/८ (धर्म, अधर्म और आकाश द्रव्य एक-एक है ।
• पुदगल, काल और जीव अनन्त होते हैं ।)
द्रव्यों की विशेषता
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आ आकाशादेकद्रव्याणि । ५ ।
निष्क्रियाणि । ६ ।
( उपरोक्त सूत्र १ में कहे गये हैं द्रव्यों में से ) आकाश तक के द्रव्य एक-एक हैं ।
यह द्रव्य निष्क्रिय है ।
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परमाणु दो प्रकार के है- सूक्ष्म और व्यवहार । सूक्ष्म परमाणु तो अव्याख्येय है। व्यवहार परमाणु जो अनन्तानन्त सूक्ष्म परमाणु पुद्गलों का समुदाय है, वह भी शस्त्र, अग्नि, जल आदि से अप्रतिहत रहता ह ।
• देखें
अनुयोगद्वार सूत्र ३३०-३४६ गणितानुयगो पृ. ७५६-५७
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