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अजीव तत्त्व वर्णन २३३ एगेण वि से पुन्ने दोहिवि पुन्ने सयंपि माएज्जा । कोडिसएण वि पुन्ने कोडिसहस्सं वि माएज्जा । अवगाहणालक्खणे णं आगासत्थिकाए ।
-भगवती, श. १३, उ. ४, सूत्र ४८१ (आकाश द्रव्य जीव द्रव्यों और अजीव द्रव्यों को स्थान देने वाला ह। यह एक से भी भरा हुआ है, दो से भी भरा हुआ है, एक करोड़ और एक अरब से भी भरा हुआ है तथा एक खरब जीव तथा पुद्गल स्कन्धों से भी भरा हुआ है । क्योंकि आकाशास्तिकाय अवगाहना लक्षण वाला है ।
जीवों उवओगलक्खणो । नाणेण दंसणेण च दुहेण य सुहेण य । - उत्तरा . २८/१०
ज्ञान, दर्शन, सुख और दुःख के द्वारा भी (जीव उपकार करता है) जीव का लक्षण उपयोग है ।
पोग्गलत्थिकाए णं ओरालिय वेउव्वय आहारए तेयाकम्मए सोइंदियचक्खिंदिय घाणिंदिय जिभिदिय फासिंदिय मणजोग वयजोग कायजोग आणापाणूणं च गहणं ,पवत्तति । गहणलक्खणेणं पोग्गलत्थिकाए ।
- भगवती १. श. १३, उद्दे. ४, सूत्र ४८१ (गौतम ! पुद्गलास्तिकाय जीवों के लिए औदारिक, वैक्रियिक, आहारक, तैजस्, कार्मण, कर्णेन्द्रिय, चक्षुरिन्द्रिय, घ्राणेन्द्रिय, रसनेन्द्रिय, स्पर्शनेन्द्रिय, मनोयोग, वचनयोग, काययोग और श्वासोच्छ्वास ग्रहण कराता है । पुद्गलास्तिकाय ग्रहण लक्षण वाला है । वत्तणा लक्खणो कालो.
- उत्तरा. २८/१० (काल वर्तना लक्षण वाला है।) द्रव्यों के कार्य और लक्षण -
गतिस्थित्युपग्रहौ धर्माधर्मयोरुपकार : ।१७। आकाशस्यावगाहः । १८ । शरीरवाङ्मनः प्राणापानाः पुद्गलानाम् । १९ । सुख-दुःख- जीवितमरणोपग्रहाश्च । २० ।
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