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ऊर्ध्वलोक - देवनिकाय
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स्थिति-आयु है वह आगे-आगे के नरकों (के नारकियों) की जघन्य आयु
है | )
भोज्जाणं जहण्णाणं दसवाससहस्सिया । -उत्तरा० ३६/१७ ( भवनवासी देवों की जघन्य आयु दस हजार वर्ष होती है ।) वाणमंतराण भंते ! देवाणं केवइयं कालठिई पण्णत्ता ? गोयमा ! जहन्नेणं दसवाससहस्साइं उक्कोसेण पलिओवमं । प्रज्ञापना, स्थिति पद
(भगवन ! व्यन्तर देवों की आयु कितनी होती है ? ) गौतम ! जघन्य दस हजार वर्ष और उत्कृष्ट एक पल्य होती है। ) नारकों तथा भवनवासी और व्यन्तर देवों की आयु
नारकाणां च द्वितीयादिषु । ४३ । दशवर्षसहस्त्राणि प्रथमायाम् ।४४।
भवनेषु च । ४५ ।
व्यन्तराणां च ।४६ ।
परा पल्योपमम् । ४७ ।
दूसरी आदि नरकभूमियों में (नारकों की) आयु इसी प्रकार ('च' शब्द से द्योतित ) है । (अर्थात् जिस प्रकार सूत्र ४२ में वैमानिक देवों के बारे में कही गई है कि पूर्व-पूर्व के देवों की उत्कृष्ट स्थिति ही आगे-आगे के देवों की जघन्य स्थिति है ।)
ही है ।
प्रथम नरकभूमि में नारकियों की जघन्य आयु दस हजार वर्ष है। और भवनवासी देवों की जघन्य आयु भी इतनी (दस हजार वर्ष)
तथा व्यंतर देवों की भी जघन्य आयु दस हजार वर्ष ही कही गई है । ( व्यन्तर देवों की ) उत्कृष्ट आयु एक पल्योपम है ।
विवेचन निकाय के देवों की जघन्य आयु बताई गई है ।
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प्रस्तुत सूत्रों में नारकी जीवों, भवनवासी देवों तथा व्यंतर
नारकी जीवों की उत्कृष्ट आयु अध्याय ३ सूत्र ६ मे बताई जा
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