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२१६ तत्त्वार्थ सूत्र : अध्याय ४ : सूत्र ४८-५३
८ लिक्षा = १यूका
८ यूका = १ यवमध्य
८ यवमध्य ___ = १ अंगुल (उत्सेधांगुल) इस अंगुल प्रमाण से -
६ अंगुल ___= १पाद २ पाद या १२ अंगुल = १ वेंत (वितश्ति) २ वेंत या २४ अंगुल = १ हाथ (रत्नि) २ हाथ या ४८ अंगुल = १ कुक्षि २ कुक्षि या ९६ अंगुल = १ दण्ड (धनुष्य, यूप, नालिका,
अक्ष, मूसल) २००० धनुष्य (दण्ड) = १ गाऊ (गव्यूति)
४ गाऊ (गव्यूति) = १ योजन (उत्सेध योजन)
इस योजन प्रमाण से एक योजन लम्बा, चौड़ा, गहरा वृत्ताकार (जिसकी परिधि ३ योजन से कुछ अधिक होगी) (पल्या) गड्ढा खोदा जाय उसे दो दिन, तीन दिन, उत्कृष्ट सात दिन के उगे हुए क्रोडों बालागों के असंख्य छोटेछोटे खण्ड करके ठसाठस ऐसा भरा जाय जिससे वे बालाग्र न अग्नि से जले, ना वायु से उड़ें, न पानी से गलें, न सड़ें, न नष्ट हों ।
उस गड्ढे (पल्य) में से सौ-सौ- वर्ष बाद एक बालाग्र निकाला जाय। इस प्रकार करते-करते जब वह पल्य (गड्ढा) खाली हो जाय, उसमें एक भी बालाग्र न रहे तो जितने समय में वह पल्य खाली हो, उतने समय को एक सूक्ष्म अद्धा पल्योपम' कहा गया है ।
सागर का प्रमाण उपरोक्त प्रमाण वाले दस क्रोड़ा-क्रोड़ी (करोड़ x करोड़) पल्योपम प्रमाण काल को एक सूक्ष्म अद्धा सागरोपम बताया गया है ।
१.
पल्य और सागर की गणना आधुनिक युग में प्रचलित गणित परिपाटी के अनुसार भी करने का प्रयास किया गया है । इसका विस्तृत विवरण "विश्व प्रहेलिका ग्रन्थ' में प्राप्त है । संक्षिप्त सार (गणितानुयोग, प्रस्तावना- प्रो. एल. सी. जैन, पृष्ठ ६४ के अनुसार) यहां दिया जा रहा है --
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