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२०८ तत्त्वार्थ सूत्र : अध्याय ४ : सूत्र २९-३५
दो असुरेन्द्रों की आयु क्रमशः एक सागरोपम और एक सागरोपम से कुछ अधिक होती है ।
विवेचन - प्रस्तुत सूत्र २९ में स्थिति (आयु) बताने का सूचन किया गया है, तथा सूत्र ३०,३१,३२ में भवनपति देवों (इन्दों) की उत्कृष्ट आयु बताई गई हैं ।
भवनवासी देवों के असुरकुमार आदि दस भेद हैं और प्रत्येक के दक्षिणार्ध तथा उत्तरार्ध के दो-दो इन्द्र है । ।
इनमें से दक्षिणार्द्ध के असुरेन्द्र चमरेन्द्र की आयु एक सागरोपम है और उत्तरार्ध के असुरेन्द्र बलीन्द्र की आयु एक सागरोपम से कुछ अधिक बताई गई है ।
. शेष नागकुमार आदि नौ प्रकार के भवनवासी देवों के दक्षिणार्ध के इन्द्रों की आयु १॥ (डेढ) पल्योपम और उत्तरार्ध के इन्द्रों की आयु १॥ (पौने दो) पल्योपम कही गई है ।
विशेष - इनकी जघन्य आयु इसी अध्ययन के सूत्र ४५ में बताई गई है । आगम वचन
दो चेव सागराइं, उक्कोसेण वियाहिया । सोहम्मम्मि जहन्नेणं एगं च पलिओवमं ।२२०। अजहन्नमणुक्कोसा, तेत्तीसं सागरोवमा । महाविमाण सव्वट्ठे ठिई एसा वियाहिया ।२४४ । उत्तराध्ययन सूत्र, अध्ययन ३६
(सौधर्मकल्प में जघन्य आयु एक पल्य तथा उत्कृष्ट आयु २ सागर की है । ईशानकल्प में जघन्य आयु एक पल्य से कुछ अधिक और उत्कृष्ट आयु दो सागर से कुछ अधिक है ।
सर्वार्थसिद्ध नामक महाविमान के देवों की उत्कृष्ट और जघन्य आयु ३३ सागर की होती है । इस प्रकार वैमानिक देवों की आयु (स्थिति) का वर्णन किया गया ।) वैमानिक देवों की आयु
सौधर्मादिषु यथाक्रमम् ।३३। सागरोपमे ।३४। अधिकेच ।३५।
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