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ऊर्ध्व लोक - देवनिकाय
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और (सूक्ष्म स्थावर जीव तो सम्पूर्ण लोक में भरे पड़े हैं, इसीलिए यहाँ तिर्यचयौनिक जीवों का यह विशद लक्षण इस सूत्र में बताया गया है ।
आगम वचन
असुरकुमाराणं भंते ! देवाणं केवइयं कालट्ठिइ पण्णत्ता ? गोयमा ! उक्कोसेणं साइरेगं सागरोवमं ... नागकुमाराणं... ?
उक्कोसेणं दो पलिओवमाइं देसूणाई... । सुपणकुमाराणं ?
उक्कोसेणं दो पलिओवमाई देसूणाई ।
एवं एएणं अभिलावेणं.. जाव थणियकुमाराणं जहा णागकुमाराणं. प्रज्ञापना, स्थितिपद, भवनपत्याधिकार
(भगवन् ! असुरकुमारों की आयु कितनी होती है ?
गौतम ! उनकी आयु अधिक से अधिक कुछ अधिक एक सागरोपम की होती है ।
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नागकुमारों की कितनी आयु होती है ।
अधिक से अधिक कुछ कम दो पल्य की होती है ।
सुपर्णकुमारों की आयु अधिक से अधिक कुछ कम दो पल्य की
होती है ।
इसी प्रकार से स्तनितकुमारों तक की आयु नागकुमारों की आयु के समान होती है ।
भवनवासी देवों की उत्कृष्ट आयु
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स्थिति : । २९ ।
भवनेषु दक्षिणआर्धपतीनां पल्योपमर्थ्यम् |३०|
शेषाणां पादोने | ३१।
असुरेन्द्रयोः सागरोपमधकिं । ३२।
आयु का वर्णन प्रारम्भ किया जाता है ।
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भवनवासी (देवों के ) दक्षिणार्ध के इन्द्रों की आयु १. १/२ ( डेढ़ ) पल्योपम होती है ।
शेष इन्द्रों की आयु (पाद + ऊन = चतुर्थभाग कम) १ III ( पौने दो ) पल्योपम की है ।
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