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________________ ऊर्ध्व लोक - देवनिकाय २०७ और (सूक्ष्म स्थावर जीव तो सम्पूर्ण लोक में भरे पड़े हैं, इसीलिए यहाँ तिर्यचयौनिक जीवों का यह विशद लक्षण इस सूत्र में बताया गया है । आगम वचन असुरकुमाराणं भंते ! देवाणं केवइयं कालट्ठिइ पण्णत्ता ? गोयमा ! उक्कोसेणं साइरेगं सागरोवमं ... नागकुमाराणं... ? उक्कोसेणं दो पलिओवमाइं देसूणाई... । सुपणकुमाराणं ? उक्कोसेणं दो पलिओवमाई देसूणाई । एवं एएणं अभिलावेणं.. जाव थणियकुमाराणं जहा णागकुमाराणं. प्रज्ञापना, स्थितिपद, भवनपत्याधिकार (भगवन् ! असुरकुमारों की आयु कितनी होती है ? गौतम ! उनकी आयु अधिक से अधिक कुछ अधिक एक सागरोपम की होती है । 1 नागकुमारों की कितनी आयु होती है । अधिक से अधिक कुछ कम दो पल्य की होती है । सुपर्णकुमारों की आयु अधिक से अधिक कुछ कम दो पल्य की होती है । इसी प्रकार से स्तनितकुमारों तक की आयु नागकुमारों की आयु के समान होती है । भवनवासी देवों की उत्कृष्ट आयु + स्थिति : । २९ । भवनेषु दक्षिणआर्धपतीनां पल्योपमर्थ्यम् |३०| शेषाणां पादोने | ३१। असुरेन्द्रयोः सागरोपमधकिं । ३२। आयु का वर्णन प्रारम्भ किया जाता है । - Jain Education International भवनवासी (देवों के ) दक्षिणार्ध के इन्द्रों की आयु १. १/२ ( डेढ़ ) पल्योपम होती है । शेष इन्द्रों की आयु (पाद + ऊन = चतुर्थभाग कम) १ III ( पौने दो ) पल्योपम की है । For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004098
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKevalmuni, Shreechand Surana
PublisherKamla Sadhanodaya Trust
Publication Year2005
Total Pages504
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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