________________
२०४ तत्त्वार्थ सूत्र : अध्याय ४ : सूत्र २५-२६
यह कृष्णराजियाँ ब्रह्मलोक कल्प के तीसरे अरिष्ट नाम के प्रतर के पास दक्षिण दिशा में त्रसनाड़ी में अवस्थित हैं । इसका संस्थान ( आकर ) कुक्कुट पिंजर (मुर्गे के पिंजड़े) के समान है ।
वहाँ नौ प्रकार के लोकान्तिक देवों के विमान है । आठ विमान आठ कृष्णराजियों में और एक उनके मध्य में ।
इन विमानों के नाम हैं - (१) अर्ची (२) अर्चिमाल (३) वैरोचन ( ४ ) प्रभंकर (५) चन्द्राभ (६) सूर्याभ (७) शुक्राभ (८) सुप्रतिष्ट और (९) रिष्टाभ। इन विमानों में रहने वाले देवों के क्रमशः नाम हैं (१) सारस्वत (२) आदित्य (३) वन्हि (४) वरुण ( अरूण) (५) गर्दतोय (६) तुषित (७) अव्याबाध (८) आग्नेय और ( ९ ) अरिष्ट
इस प्रकार इनका निवास ब्रह्मलोक कल्प के देवों से विशिष्ट है ।
अनुभाव विशिष्टता- दूसरी विशिष्टता है अनुभाव की । यह देव आमोद-प्रमोद के लिए भी नहीं जाते' । इन देवों में कल्प व्यवस्था नहीं है। सभी देव स्वतन्त्र हैं ।
यह देव विषय वासना से प्रायः मुक्त रहते हैं) अतः देवर्षि भी कहलाते
हैं।
लोकान्तिक अभिधा का हेतु लोक का एक अर्थ जन्म-मरण रूप संसार है । यह देव मनुष्य जन्म प्राप्त कर उसी भव से मुक्त हो जाते
हैं
। अतः इन देवों की लोकान्तिक अभिधा सार्थक हैं । लोकान्तिक विमानों में रहने के कारण भी ये लोकान्तिक कहे जाते हैं ।
आगम वचन
विजय वेजयन्त जयन्त अपराजिय देवत्ते के वइया दव्विंदिया अतीता पण्णत्ता ?
१.
२.
-
-
स्थानांग (उ. १) के अनुसार ये देव सिर्फ तीर्थंकर भगवान के जन्म, केवलज्ञानोत्पत्ति प्रसंग (कल्याणक) पर उपस्थित होते हैं।
Jain Education International
-
'अनुसार
कल्पसूत्र के 'जब तीर्थंकर देव दीक्षा लेने का विचार करते हैं, तब ये देव अपने जीताचार के अनुसार आकर उनसे धर्मतीर्थ प्रवर्तन का प्रार्थना करते हैं ।
दीक्षा एव
आन्तरभवे मुक्ति गमनादिति लोकान्तिका: । विस्तार के लिए देखें अभिधान राजेन्द्रकोष भाग ६, पृष्ठ ७१२
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org