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६२ तत्त्वार्थ सूत्र
दव्वओं णं सुअनाणी उवउत्ते सव्वदव्वाइ जाणइं, पासइ... भावओं सव्वंभावं जाणइ, पासइ । - नन्दीसूत्र, सूत्र ११४, गणिपिटक की शाश्वतता अधिकार
(मतिज्ञानी सामान्य से सभी द्रव्यों को जानता है, देखता नहीं । भाव से सब भावों को जानता है, देखता नहीं । द्रव्य से श्रुतज्ञानी उपयोग लगाकर सभी द्रव्यों को जानता है, देखता है ।
भाव से... सभी भावों को जानता है, देखता है ।)
विशेष - वृत्तिकार के अनुसार यह कथन श्रुतकेवली की अपेक्षा से हैं, सामान्य श्रुतज्ञानी जानता है, देखता नहीं हैं । मति-श्रुतज्ञान के ग्राह्य विषय -
मतिश्रुतयोर्निबन्ध : सर्वद्रव्येष्वसर्वपर्यायेषु । २७।
मति और श्रुतज्ञान द्रव्यों की असर्व (सब नहीं -परिमित) पर्यायों को जानते हैं ।
विवेचन - प्रस्तुत सूत्र का अभिप्राय यह है कि मति और श्रुतज्ञान द्रव्यों की अपेक्षा तो समस्त छह द्रव्यों को जानते हैं किन्तु उनकी समस्त पर्यायों को नहीं जानते ।
सूत्र का यह कथनसामान्य श्रुतज्ञानी की अपेक्षा है; किन्तु सम्पूर्ण गणिपिटक को धारण करने वाले श्रुतकेवली सभी द्रव्यों की समस्त पर्यायों को भी जानने में सक्षम होते हैं ) .
यहां यह जिज्ञासा हो सकती है कि मति-श्रुतज्ञान तो परोक्ष हैं, इन्हें वस्तु का स्वरूप जानने के लिए इन्द्रिय और मन की अपेक्षा होती है और इन्द्रियाँ तथा मन अरूपी द्रव्य तथा उनकी सूक्ष्म पर्यायों को कैसे जानते ह?
इस जिज्ञासा का समाधान एक दृष्टान्त से हो जायेगा । कल्पना करिए कि अमेरिका के किसी व्यक्ति को आगरा के ताजमहल का ऐसा सजीवचित्र दिखा दिया जाय कि उसमें ताजमहल की एक-एक विशेषता, सूक्ष्म चित्रकारी हूबहू अंकित हो तो उसके लिए ताजमहल प्रत्यक्ष ही हो जायेगा; मानो उसने अपनी आँखों से ही ताजमहल देख दिया है ।
१ नन्दी सूत्र टीका, गणिपिटक अधिकार ।
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