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११८ तत्त्वार्थ सूत्र अध्याय २ : सूत्र ३७-४१
वैज्ञानिकों ने देखा कि मानव शरीर के आकार का ही एक सूक्ष्म शरीर है, वह विद्युत्मय है । वह बाह्य शरीर को समस्त ऊर्जा प्रदान कर रहा ह । वैज्ञानिकों ने उसे रोकने का प्रयत्न किया, किन्तु वह किसी भी प्रकार रुका नहीं, सभी प्रकार के प्रतिबन्ध - आवरण विफल हो गये ।
इस शरीर का नाम दिया गया (Electric body) और सूक्ष्म परमाणुओं से निर्मित होने के कारण सूक्ष्म शरीर (Subtle body)
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वैज्ञानिकों ने पता लगाया है कि क्रोध आदि कषायों, भय आदि के संवेगों के समय इस अग्निमय तैजस् शरीर में काले बिन्दु उभर आते है । विचित्र बात यह है कि इस शरीर का पोषण वायु, प्राणवायु से होता है । प्राणवायु से यह उद्दीप्त होता है, शक्तिशाली बनता है ।
क्रोध के समय यह बहुत उद्दीप्त हो जाता है, इसमें तीव्र हल-चल मचती है और क्रोध के अभाव में यह स्वाभाविक स्थिति में रहता है । चिकित्साविज्ञानी अनेक रोगों में इसी शरीर पर आधारित चिकित्सापद्धति विकसित कर रहे हैं और इनमें लाभ भी हो रहा है । अनेक असाध्य समझे जाने वाले रोग अब साध्य हो गये हैं ।
वस्तुतः तैजस् शरीर जिसे योग ग्रन्थों में प्राणमय शरीर कहा गया है, अनेक रहस्यों को अपने में समेटे हुए हैं । विज्ञान इस पर शोध कर रहा है । वह इसका अस्तित्व स्वीकार कर चुका है ।
आगम वचन
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तेयासरीरप्पओगबन्धे णं भन्ते ! कालओ केवचिरं होइ ? गोयमा ! दुविहे पण्णत्ते तं जहा - अणाइए वा अपज्जवसिए; अणाइए वा सपज्जवसिए ।
कम्मासरीप्पओ गबन्धे
अणाइये सपज्जवसिए अणाइए अपज्जवसिए वा एवं जहा तेयगस्स । भगवती श. ८, उ. ९, सूत्र ३५१ (भगवन् ! तैजस्शरीर का प्रयोगबन्ध समय की अपेक्षा कितनी देर तक होता है ? गौतम ! वह दो प्रकार का होता है। (१) (अभव्यों के) अनादिक और अपर्यवसित (अनन्त) तथा (२) ( भव्यों के ) अनादिक और सपर्यवसित ( सान्त) |
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तैजस्शरीर के ही समान कार्मणशरीर का प्रयोगबन्ध भी समय की अपेक्षा दो प्रकार का होता है (१) (अभव्यों के) अनादिक और अनन्त तथा (२) ( भव्यों के) के अनादिक तथा सान्त ।)
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