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१३४ तत्त्वार्थ सूत्र : अध्याय ३ : सूत्र १-२
विशेष- प्रस्तुत सूत्र में 'वात' शब्द आया है वह व्याकरण के नियम के अनुसार समस्यन्त है । दो 'वात' शब्दों का समास होने से एक वात 'शब्द' का लोप हो गया है - वातश्च वातश्च वातौ । अतः 'घनाम्बुवात' से घनोदधिवात और घनवात दोनों ही समझने चाहिए। और 'घन' शब्द सामान्य है अतः इसका विशेष तनुवात भी ग्रहण कर लेना चाहिए । इस प्रकार सूत्रोक्त 'घनाम्बुवात' शब्द में घनोदधिवात, घनवात और तनुवात- यह तीनों ही गर्भित है ।
विवेचन प्रस्तुत सूत्रों में नरकवासों की स्थिति बताई गई है । कहा गया कि सात नरक पृथ्वियाँ अथवा भूमियाँ हैं, जो क्रमशः एक दूसरी
हैं ।
नरको का विशेष वर्णन
नरको के नाम - इन सात पृथ्वियों के नाम इस प्रकार क्रमशः बताये गये है १. घमा, २. वंसा, ३. शैला, ४, अंजना, ५. रिष्ठा, ६. मघा और ७. माघवती । ( ठाणं ७ / ५४६ )
रत्नप्रभा आदि जो पृथ्वियों के नाम प्रसिद्ध हैं, वे उनके गोत्र हैं ।
यदि विचारपूर्वक देखा जाय तो रत्नप्रभा आदि नाम उस स्थान विशेष के प्रभाव, वातावरण (पर्यावरण) के कारण है ।
रत्नप्रभा भूमि काले वर्ण वाले भयंकर रत्नों से व्याप्त हैं ।
शर्कराप्रभा भूमि भाले और बरछी से भी अधिक तीक्ष्ण शूल जैसे कंकरों से भरी है ।
बालुकाप्रभा पृथ्वी में भाड़ की तपती हुई गर्म बालू से भी अधिक उष्ण
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बालू है
पंकप्रभा में रक्त, मांस पीव आदि दुर्गन्धित पदार्थों का कीचड़ भरा है धूमप्रभा में मिर्च आदि के धुँए से भी अधिक तीक्ष्ण दुर्गन्ध वाला धुँआ व्याप्त रहता है ।
तमः प्रभा में सतत घोर अंधकार छाया रहता है ।
महातम - प्रभा में घोरातिघोर अन्धकार व्याप्त है ।
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