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अधोलोक तथा मध्यलोक
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पुष्करवद्वीप में मानुषोत्तर नाम का एक पर्वत उत्तर-दक्षिण विस्तृत हैं। नाम के अनुरूप यह मनुष्यलोक कीसीमा है अर्थात् इसके आगे के द्वीपों और समुद्रों में मनुष्यों का निवास नहीं हैं ।
इसमें एक अपवाद हैं ऋद्धिधारी मुनि आदि वहां जा सकते हैं, देवता भी किसी मनुष्य का अपहरण करके वहां ले जा सकते हैं; किन्तु वहां उनका निवास चिरकाल तक नहीं हो पाता; जन्म-मरण आदि तो मानुषोत्तर पर्वत की सीमा में ही होते हैं ।
यह ढाई द्वीप के क्षेत्र की चौड़ाई (विष्कंभ ) ४५ लाख योजन हैं । इसी कारण सिद्धशिला क विष्कंभ भी ४५ लाख योजन है क्योंकि मनुष्य ही मुक्त हो सकता है और जहां से मनुष्य मुक्त होता है वहां से सीधी गति मे मोक्ष जाता है ।
कर्मभूमियाँ - भोगभूमियाँ - कर्मभूमि का अभिप्राय है जाहं असि, मषि, कृषि, वाणिज्य आदि से श्रम करके मानव जीविका का उपार्जन करता है। अकर्मभूमि (भोगभूमि) में मानव की सभी आवश्यकताएं कल्पवृक्षों से पूरी हो जाती हैं, उसे किसी प्रकार का श्रम नहीं करना पड़ता ।
कर्मभूमियां (ढाई द्वीप की अपेक्षा) १५ हैं ५ भरतक्षेत्र (१ जमंबूद्वीप का, २ धातकीखण्डद्वीप के और २ पुष्करार्ध द्वीप के ) ५ ऐरवत क्षेत्र (१ जम्बूद्वीप का, २ धातकीखण्डद्वीप के और २ पुष्करार्ध द्वीप के ) तथा ५ विदेहक्षेत्र के (१ जंबूद्वीप का, २ धातकीखण्डद्वीप के और २ पुष्करार्ध द्वीप के ) ।
। पहले तीन
भरत और ऐरवत क्षेत्रों में कालचक्र का प्रवर्तन होता है कालों में भोगभूमि की स्थिति रहती है और चौथे, पांचवे, छठे इन तीन कालों में कर्मभूमि की । विदेह क्षेत्र में सदा चतुर्थकाल ही रहता है । इसी क्रम से अकर्मभूमि (भोगभूमि ) ३० हैं ६ हैमवत, ५ हरिवर्ष, ५ रम्यकवर्ष, ५ हैरण्यवत; ५ देवकुरु और ५ उत्तरकुरु ।
मनुष्यों के दो प्रमुख भेद : मनुष्यों के दो प्रमुख भेद हैं आर्य और २. म्लेच्छ ।
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निमित्त की अपेक्षा आर्यो के ६ भेद हैं १. क्षेत्र आर्य-आर्य क्षेत्र में जन्म लेने वाले, २. जात्यार्य उच्च जाति में जन्म लेने वाले, ३ कुल आर्यआर्य (श्रेष्ठ) कुल में जन्म लेने वाले, ४. कर्म आर्य-श्रेष्ठ कर्म से जीविका उपार्जन करने वाले, ५. शिल्पार्य-कारीगरी से जीविका उपार्जन करने वाले, ६. भाषार्य-शिष्ट, विशिष्ट भाषा का प्रयोग करने वाले ।
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