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१५६ तत्त्वार्थ सूत्र : अध्याय ३ : सूत्र १२-१८
पुष्करार्ध च ।१३।
प्राङ्मानुषोत्तरान् मनुष्याः ।१४।
आर्या म्लेच्छाश्च ।१५।
भरतैरावतविदेहाः । कर्मभूमयोऽन्यत्र देवकरूत्तरकुरूभ्यः । १६ । नृस्थिति परापरे त्रिपल्योपमान्तर्मुहूर्त । १७।
तिर्यग्योनीनां च । १८।
धातकीखण्ड द्वीप में ( जम्बूद्वीप की अपेक्षा पर्वत एवं क्षेत्र ) दुगुने हैं । पुष्करवरार्द्धद्वीप में भी ( धातकीखण्ड द्वीप के समान) उतने ही हैं । मानुषोत्तर पर्वत से इस ओर ( पहले तक) ही मनुष्य हैं ।
वे (मनुष्य) आर्य और म्लेच्छ ( दो प्रकार के ) हैं ।
भरत, हैमवत और विदेह (देवकुरु तथा उत्तरकुरू के अतिरिक्त) यह कर्मभूमियाँ हैं ।
मनुष्यों की आयु उत्कृष्ट तीन पल्योपम और कम से कम अन्त- - मुहूर्त
हैं ।
तिर्यंचो की आयु भी इतनी ही ( मनुष्यों के समान ) हैं ।
विवेचन प्रस्तुत सूत्र १२ से १८ तक में मनुष्यलोक तथा मनुष्य एवं तिर्यंचो की स्थिति (आयु) सम्बन्धी वर्णन हैं ।
मनुष्यलोक मनुष्यलोक से अभिप्राय है, जहाँ तक मनुष्य रहते हों या जिस क्षेत्र में मनुष्य का जन्म होता हो । जैनदृष्टि से ढाई द्वीपों में मनुष्यों का निवास है एक जम्बूद्वीप, दूसरा धातकीखण्डद्वीप और आधा पुष्करवर
द्वीप ।
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जम्बूद्वीप की अपेक्षा धातकीखण्ड द्वीप में दुगुने पर्वत और क्षेत्र हैं । तथा पुष्करार्ध (आधी पुष्कर) द्वीप में धातकीखण्ड द्वीप के समान हैं । धातकीखण्डद्वीप में २ मेरु पर्वत १२ वर्षधरपर्वत तथा १४ क्षेत्र हैं । इतने ही पुष्करवरार्द्धद्वीप में हैं ।
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द्वीप और समुद्र एक-दुसरे से चारों ओर से वैष्टित हैं । जम्बूद्वीप लवणसमुद्र से, लवणसमुद्र धातकीखण्ड द्वीप से, धातकीखण्डद्वीप कालोदधि समुद्र से, कालोदधि समुद्र पुष्करवरद्वीप से चारो ओर से वैष्टित है ।
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