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आगम वचन
अधोलोक तथा मध्यलोक १३३ अधोलोक
कहि णं भंते ! नेरइया परिवसंति ?
गोयमा ! सट्ठाणेणं सत्तसु पुढवीसु, तं जहा
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रयणप्पभाए, सक्करप्पभाए, बालुयप्पभाए, पंकप्पभाए, धूमप्पभाए, तमप्पभाए, तमतमप्पभाए -प्रज्ञापना, नरकाधिकार, पद २ अत्थि णं भंते ! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए अहे घणोदधीति वा घणवातेति वा तणुवातेति वा ओवासंतरेति वा ।
हंता अत्थि एवं जाव अहे सत्तमाए ।
- जीवाभिगम, प्रतिपत्ति, २ सू० ७०-७१
(भगवन् ! नारक - जीव कहां रहते हैं ?
गौतम ! वह अपने स्थानों सातों पृथ्वियों में रहते है । जिनके नाम यह हैं - १. रत्नप्रभा, २. शर्कराप्रभा, ३. बालुकाप्रभा, ४. पंकप्रभा, ५. धूमप्रभा, ६. तमः प्रभा और ७. तमस्तमप्रभा ।
इस रत्नप्रभा पृथ्वी के बाहर घनोदधिवातवलय है, उसके बाहर घनवातवलय है, उसके भी बाहर तनुवातवलय है और सबसे बाहर आकाश है, इसी प्रकार नीचे - नीचे सातवीं पृथ्वी तक है ।)
नरकलोक वर्णन
रत्न-शर्करा - बालुका - पंक - धूम - तमो-महातमः प्रभा भूमयो घनाम्बु वाताकाशप्रतिष्ठाः सप्ताधोधः पृथुतराः 19 |
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तासु नरकाः ।२।
सात पृथ्वियाँ हैं, उनके नाम हैं - १. रत्नप्रभा, २. शर्कराप्रभा, ३. बालुकाप्रभा, ४. पंकप्रभा, ५. धूमप्रभा, ६. तमः प्रभा और ७ महातमः प्रभा । यह सातों पृथ्वियाँ तीन वातवलय और आकाश पर स्थित हैं और क्रमशः एक दूसरी के नीचे हैं तथा क्रमशः एक दूसरी से अधिक विस्तारवाली हैं । यानी क्रमशः पहली से दूसरी की लम्बाई-चौड़ाई अधिक होती चली गई है; किंतु मोटाई घटती गई है ।'
उन पृथ्वियों में नरक (नारक) हैं ।
१ देखें, गणितानुयोग पृष्ठ ३७, पर अभयदेव सूरिकृत टीका
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