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जीव-विचारणा १३१ फिर यह भी आवश्यक नहीं कि अपवर्तनीय आयु अवश्य ही बीच में टूटेगी, कम होगी, शीघ्र भोगी ही जायेगी । यह सब तो निमित्तों पर निर्भर है । आधुनिक युग में भी बहुत से ऐसे मनुष्य एवं पशु हैं जो अपनी पूरी आयु भोगकर स्वाभाविक मृत्यु प्राप्त करते हैं ।
___ अब एक प्रश्न और हो सकता है - क्या जिस तरह अपवर्तनीय आयु निमित्तों के कारण शीघ्र भोग ली जाती है, इसी प्रकार अनुकूल निमित्त मिलाकर बढ़ाई भी जा सकती है ?
यद्यपि आयुर्वेद, योगशास्त्र आदि प्राचीन युग में यानी कुशल वैद्य, योगी, साधु, तपस्वी आदि तथा आधुनिक युग के चिकित्सा वैज्ञानिक आयु बढ़ाने का दावा करते हैं, किन्तु आयु बढ़ाने सम्बन्धी उनका कोई दावा सफल नहीं हुआ, मृत्यु को आज तक कोई भी नहीं रोक पाया, मौत का इलाज कोई भी न कर सका ।
और सिद्धान्त तो इस बात में निश्चित है ही कि बंधी हुई आयु में एक क्षण भी नहीं बढ़ाया जा सकता है ।
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