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१४८ तत्त्वार्थ सूत्र : अध्याय ३ : सूत्र ६ । वाले जीव मनुष्य और तिर्यंच गति से ही आते हैं और अपनी नरकायु भोगकर तिर्यंच अथवा मनुष्य गति में ही उत्पन्न होते हैं ।
__ जीवों के उत्पन्न होने को आगति और आयु पूर्ण करके दूसरी गति में जन्म लेने को गति कहा जाता है । भाष्य के अनुसार नारकी जीवों की गति
और आगति का वर्णन निम्न प्रकार है - . आगति - असंज्ञी जीव (एकेन्द्रिय से लेकर चउरिन्द्रिय तक के सभी जीव तथा मनरहित पंचेन्द्रिय जीव भी) पहली नरंकभूमि तक में जन्म ले सकते हैं ।भुजपरिसर्प (नेवला, चूहा आदि) दूसरी नरक भूमि तक, खेचर (पक्षी) तीसरी नरकभूमि तक, स्थलचर (सिहं, अश्व आदि) चार नरकभूमियों तक, उरपरिसर्प (सर्प आदि) पाँचवीं नरक भूमि तक, स्त्री छठी भूमि तक और मनुष्य सातवीं भूमि तक उत्पन्न हो सकते हैं ।
गतागत द्वार के अनुसार प्रथम नरक में २५ जीवों की आगति है - १५ कर्मभूमिज, ५ संज्ञी तिर्यंच पंचेन्द्रिय ५ असंज्ञी तिर्यंच पंचेन्द्रिय ।
दूसरी नरक में ५ असंज्ञी पंचेन्द्रिय को छोड़कर २० जीव उत्पन्न होते हैं । तीसरी में भुजपरिसर्प को छोड़कर १९, चौथी में खेचर छोड़कर १९, पांचवी में स्थलचर छोड़कर १७, छठी में उपरपरिसर्प छोड़कर १६ तथा सातवीं में भी १६ जीव भी आगति हैं, किंतु स्त्री मरकर सातवीं नरक में उत्पन्न नहीं होती ।
गति - पहली से तीसरी नरक तक के जीव मनुष्यगति में उत्पन्न होकर तीर्थंकर पदवी तक प्राप्त कर सकते हैं । पहली से चौथी नरक तक के नारक मनुष्य गति में आकर निर्वाण प्राप्त कर सकते हैं । पांचवीं नरक के नारक (मनुष्यगति पाकर संयम ग्रहण कर सकते हैं । छठी नरक से निकले नारक देशविरित और सातवीं नरक से निकले नारक सम्यक्त्व धारण कर सकते है।
इस प्रकार यहां तक अधोलोक, नरक और नारक जीवों का वर्णन पूरा हुआ । (तालिका पृष्ठ १४९ पर देखें)
तिर्यक् लोक (मध्यलोक) आगम वचन
गोयमा ! अस्सिं तिरियलोए जंबुद्दीवाइया दीवा लवणाइया समुद्दा .. असंखेजजा दीव-समुद्दा सयंभूरमणपज्जवसाणा ..
- जीवाइब. प. ३ उ. १
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