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अधालोक तथा मध्यलोक १५१ समान गोल आकार वाला है । द्वीप, समुद्र को और समुद्र, द्वीप को परस्पर वेष्टित किये हुए हैं ।
मध्यलोक के मध्य में जम्बूद्वीप हैं, फिर लवणसमुद्र हैं । इसी प्रकार द्वीप और समुद्र के क्रम से चलते हुए इस मध्यलोक का अन्तिम द्वीप है । स्वयंभूरमण द्वीप और अन्तिम समुद्र स्वयंभूरमण नाम का समुद्र उसे घेरे हुए है । स्वयंभूरमण द्वीप और समुद्र मध्यलोक के अन्तिम द्वीप-समुद्र हैं । आगम वचन -
___जंबुद्दीवे सव्वद्दीवसमुद्दाणं सव्वभंताराए सव्वखुड्डाए वट्टे.. एग जोयणसहस्सं आयामविक्खभेणं. - जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति सूत्र १/३
जंबुद्दीवस्स बहुमज्झदेसभाए एत्थ णं जंबुद्दीवे मन्दरे णाम पव्वए पण्णत्ते । णवणउतिजोअणसहस्साई उद्धं उच्चत्तेणं एगं जोअणसहस्स उव्वेहेणं ।
- जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति सूत्र १०३ जंबुद्दीवे सत्तवासा पण्णत्ता; तं जहा - भरहे एरवते हेमवते हेरण्णवते हरिवासे रम्मवासे महाविदेहे । - स्थानांग, स्था, ७, सू. ५५५ जंबुद्दीवे छ वासहरपव्वता पण्णत्ता, तं जहा - चुल्लहिमवंर्ते महाहिमवन्ते निसढे नीलवंते रुप्पि सिहरी ।
- स्थानांग स्थान ६, सूत्र ५२४ (गोल आकार का जम्बूद्वीप सब द्वीप समुद्रो के बीच में सबसे छोटा है, इसका विस्तार एक लाख योजन है ।
जंबूद्वीप के ठीक बीचोंबीच सुमेरु नाम का पर्वत है, यह पृथ्वी के ऊपर ९९ हजार योजन ऊँचा है, एक हजार योजन पृथ्वी के अन्दर है । जंबूद्वीप में सात क्षेत्र हैं- भरत, ऐरवत, हैमवत, ऐरण्यवत, हरिवर्ष, रम्यकवर्ष और महाविदेह ।
जंबूद्वीप में उन सात क्षेत्रों को बाँटने वाले (पूर्व से पश्चिम तक लंबे) छह कुलाचल (वर्षधर) पर्वत है । वह इस प्रकार हैं (१) चुल्ल हिमवन्त (छोटा हिमवान), (२) महाहिमवान (३) निषध (४) नील (५) रुक्मि और (६) शिखरी ।
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