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अधोलोक तथा मध्यलोक
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इस प्रकार लोक की अधिकतम चौड़ाई ७ राजू, कम से कम चौड़ाई १ राजू है तथा यह १४ राजू ऊँचा है । इसका कुल घनफल ३४३ घन राजू है । इसमें से अधोलोक के १९६ घन राजू हैं और उर्ध्वलोक के १४७ घन राजू हैं ।
यद्यपि लोक की अधिकतम चौड़ाई ७ राजू है किन्तु जैसा कि पहले कहा जा चुका है, त्रस जीव तो १ राजू चौड़ी स्तम्भाकार १४ राजू ऊँची त्रस नाड़ी में ही रहते हैं । त्रस - नाड़ी के बाहर सिर्फ सूक्ष्म स्थावर जीव ही ह। लोक का विस्तार यहाँ यह जिज्ञासा हो सकती है कि लोक को चौदह रज्वात्मक कहा गया है और घनफल की अपेक्षा ३४३ राजू प्रमाण तो एक राजू का प्रमाण क्या है ? वह कितना लम्बा, चौड़ा है और इस लोक का कितना विस्तार है ?
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इस विषय में भगवती सूत्र में छह देवों का दृष्टान्त दिया गया है । ( वृत्ताकार जम्बूद्वीप १ लाख योजन लम्बा-चौड़ा हैं और उसकी परिधि ३,१६,२२७ योजन, ३ कोस, १२८ धनुष और कुछ अधिक १३ ॥ अंगुल है । इस जम्बूद्वीप में १ लाख योजन ऊँचा मेरु पर्वत है ।
कल्पना करो - महान ऋद्धि वाले छह देवता' मेरु पर्वत की चूलिका पर खड़े हैं और चार देवियाँ जम्बूद्वीप की ८ योजन ऊँची जगती पर बाहर की ओर मुंह करके खडी है । उनके हाथ में बलिपिण्ड है ।
वे बलिपिण्डों को नीचे गिराती है। ठीक उसी क्षण मेरु चूलिका पर खडे देव चलते है और जम्बुद्वीप की परिधि का पूरा चक्कर लगाकर बलिपिण्डों को जमीन पर गिरने से पहले ही बीच में लपक लेते हैं ।
इसका अभिप्राय यह हुआ कि देवों की गति कुछ ही क्षणों में ४, १६ योजन (१ लाख योजन मेरू पर्वत की ऊँचाई से नीचे आना और ३ लाख १६ हजार योजन की परिधि लांघना) गति करने की है ।
यदि वे छहों देव (चार देव चार दिशाओं में और २ देव ऊर्ध्व और अधो दिशा में) इसी गति से लगातार चलते जायें और लगभग दस हजार वर्ष तक (एक-एक हजार वर्ष की आयु वाले मनुष्य की सात पीढ़ियाँ और उनके नाम गोत्र भी नष्ट हो जायँ इस अपेक्षा से) चलते ही रहें तो भी
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छ महिड्ढिया जाव महेसक्खा देवा जंबुदीवे दीवे मंदरे पव्वए मंदर चूलिया सव्वओं समंता संपरिक्खित्ताणं चिट्ठेज्जा..... शतक ११/१०
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