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११६ तत्त्वार्थ सूत्र अध्याय २ : सूत्र ३७-४१
(५) कार्मणशरीर - आठ प्रकार के कर्मों का समूह ही कार्मण शरीर
आगम वचन - ... पदेसट्ठयाए सव्वत्थोवा आहारगसरीरा पदेसट्ठयाए वेउव्वियसरीरा पदेस ठ्याए असंखेनगुणा
ओरालियसरीरा पदेसट्ठायाए असंखेनगुणा तेयगसरीरा पदेसट्ठयाए अणंतगुणा .. कम्मगसरीरा पदेसठ्ठयाए अणंतगुणा । प्रज्ञापना, शरीर पद २१ (.... प्रदेशों की अपेक्षा आहारकशरीर सबसे कम होते हैं । वैक्रियशरीर प्रदेशों की अपेक्षा आहारक से असंख्यातगुणे होते हैं । उनसे औदारिक शरीर प्रदेशों की अपेक्षा असंख्यातगुणे होते हैं । उनसे प्रदेशों की अपेक्षा तैजस् शरीर अनन्तगुणे होते हैं ।
और प्रदेशों की अपेक्षा कार्मणशरीर उनसे (तैजस्शरीर से) भी अनन्तगुणे होते हैं । अप्पडि हयगई ।
राजप्रश्नीय सूत्र ६६ (इनमें से अंत के दो तैजस् और कार्मणशरीर) अप्रतिहत गति वाले होते हैं ( इनकी गति किसी भी अन्य वस्तु से नहीं रूकती । ) शरीरों की विशेषाताएँ -
परं परं सूक्ष्मम् ।३८। प्रदेशतोऽसंख्येयगुणं प्राक् तैजसात् ।३९ । अनन्तगुणे परे ।४०। अप्रतीघाते ।।१। (औदारिक से आगे-आगे के-कार्मणशरीर तक) यह सभी शरीर सूक्ष्म
हैं। )
प्रदेशों (परमाणुओं-पुद्गल परमाणुओं) की अपेक्षा तैजस् शरीर से पहले के (तीन शरीर) असंख्यातगुणे हैं।)
आगे के (तैजस् और कार्मणशरीर प्रदेशों की अपेक्षा) अनन्तगुणे हैं ।
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