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आगम वचन
गोयमा ! पंच सरीरा पण्णत्ता, ओरालिए, वेउव्विए, आहारए
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कर्मण
शरीर के भेद
( गौतम ! शरीर पाँच कहे गये हैं
(१) औदारिक (२) वैक्रिय (३) आहारक (४) तैजस् और (५)
जा सकता है ।
(१) औदारिकशरीर
औदारिक क्रियाहारक तैजसकार्मणानि शरीराणि । ३७।
(१) औदारिक (२) वैक्रिय (३) आहारक (४) तैजस् (५) कार्मणयह पाँच प्रकार के शरीर है ।
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विवेचन संसारी जीवों के शरीर पाँच प्रकार के होते हैं ।
यह चर्म - चक्षुओं - स्थूल इन्द्रियों द्वारा देखा
जीव-विचारणा ११५
तं जहा
तेयए, कम्मए ।
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(४.) तैजस्शरीर
प्रज्ञापना, शरीर पद, २१
(२): वैक्रियशरीर - इसमें अनेक प्रकार का छोटा बड़ा आकार बनाने
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की क्षमता होती है, यह हल्का भारी भी हो सकता है ।
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(३) आहारकशरीर यह सयंमी मुनि की एक विशेष प्रकार की लब्धि होती है। इसका आकार एक हाथ का होता है, वर्ण श्वेत तथा यह शुभ ही होता है ।
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संयमी मुनि को जब किसी तत्त्व में शंका हो जाती है और उसका समाधान करने वाले गुरुदेव समीपस्थ न हों, तब एक हाथ का, उन मुनि की शरीराकृति के प्रतिरूप, एक पुतला दाँये कन्धे से निकलता हैं, तथा केवली भगवान के दर्शन करके पुनः मुनि के शरीर में प्रविष्ट हो जाता है । यह पुतला ही आहारक शरीर है और इसका प्रयोजन है संशय-निवारण | यह शरीर चौदह पूर्वधर मुनियों को ही उनकी विशिष्ट तपस्या के फलस्वरूप लब्धि रूप
में प्राप्त होता है ।
इसके कारण शरीर में तेज, ओज, ऊर्जा रहती है तथा पचन-पाचन आदि क्रियाएँ भी इसी के कारण होती हैं । शरीरस्थ तेजस् शक्ति का कारण भी यही है ।
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