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जीव-विचारणा ११३ यह आकार योनि के भेद मनुष्यनी (मानव-स्त्री) तथा पंचेन्द्रिय तिर्यंचनी (मादा पशु) की योनि की अपेक्षा हैं । किन्तु गुणयोनि और उसके नौ भेद सभी संसारी जीवों को दृष्टिगत रखकर किये गये हैं ।
(१) सचित्तयोनि जीव सहित होती है तथा (२) अचित्तयोनि जीवरहित और (३) मिश्र (सचित्ताचित्त) योनि का कुछ भाग जीव सहित और कुछ भाग जीव रहित होता है । (४) शीतयोनि शीत (ठंडा) स्पर्श वाली होती है तथा (५) उष्णयोनि का स्पर्श गर्म होता है और (६) शीतोष्णयोनि का स्पर्श ठंडा-गर्म मिश्रित । (७) संवृतयोनि ढकी हुई और (८) विवृतयोनि खुली होती है तथा (९) संवृत्तविवृत योनि कुछ ढकी और कुछ खुली मिश्र दशा में होती है ।
आगम में जो ८४ लाख जीव योनियाँ बताई हैं, वे इन्हीं नौ योनियों का विस्तार हैं । जैसे वनस्पतिकाय के वर्ण, गंध, रस स्पर्श के तरतमभाव से जितने भी उत्पत्तिस्थान हैं, उतनी ही योनियाँ गिनी गई हैं तथा जितनी जाति-उपजातियां हैं, उतनी ही कुलकोड़ियां हैं ।
__ इस प्रकार विस्तार की अपेक्षा (समस्त संसारी जीवों की ८४ लाख योनियाँ और १९७॥ लाख कुल कोड़ियां मानी गई हैं)
(तालिका पृष्ठ ११२ पर दी गई हैं ।) आगम वचन -
अंड्या पोतया जराउया । - दशवैकालिक, अ. ४, त्रसाधिकार गब्भवक्कं तिया य।
प्रज्ञापना, पद १ (१) अण्डज (२) पोतज (३) जरायुज गर्भ जन्म वाले होते हैं.) गर्भ जन्म के प्रकार -
जरायुजाण्डजपोतानां गर्भ : ३४।
(१) जरायुज (२) अण्डज और (३) पोतज-इन तीन प्रकार के जीवों का गर्भ जन्म हैं ।
विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में गर्भज जीवों के भेद बताये हैं ।
(१) जो जीव जाल के समान मांस और रुधिर से भरी एक प्रकार की थैली से लिपटे हुए पैदा होते हैं, उन्हें जरायुज कहते हैं । जैसे - मनुष्य
(२) अण्डज- जो जीव अण्डे से उत्पन्न होते हैं, जैसे -मुर्गा, आदि
(३) पोतज - इन जीवों के शरीर पर किसी प्रकार का आवरण नहीं होता, वे माता के गर्भ से निकलते ही चलने-फिरने लगते हैं, जैसे-हाथी आदि
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