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१२० तत्त्वार्थ सूत्र अध्याय २ : सूत्र ४२-४३-४४
शरीर वाले के भी होते हैं, आहारकशरीर वाले के भी तैजस् और कार्मण शरीर होते हैं ।
गौतम ! तैजस्शरीर वाले के कार्मणशरीर नियम से होता है और कार्मणशरीर वाले के तैजस्शरीर नियम से होता है ।) एक साथ कितने शरीर संभव
तदादीनि भाज्यानि युगपदेकस्या चतुर्भ्य: ।४४।
इन (तैजस् और कार्मण) दो शरीरों कों आदि लेकर एक जीव के एक साथ (एक समय में) चार शरीर तक हो सकते हैं ।
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विवेचन प्रस्तुत सूत्र का अभिप्राय यह है कि एक शरीर किसी भी संसारी जीव को नहीं हो सकता, कम से कम दो होंगे और अधिक से अधिक चार शरीर हो सकते हैं ।
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जीव के दो शरीर हों तो तैजस् और कार्मण; तीन हों तो तैजस, कार्मण, औदारिक अथवा तैजस् कार्मण, वैक्रिय और यदि चार हों तो तैजस् कार्मण, औदारिक आहारक होते हैं
आहारक और वैक्रिय शरीर एक जीव में एक साथ नहीं हो सकते । इसका कारण यह है कि वैक्रियशरीर देवों और नारकियों में होता है, उनके तो आहरकशरीर संभव ही नहीं है, क्योंकि आहारकशरीर केवल १४ पूर्व के धारक संयती श्रमण के ही हो सकता है ।
इसी नियम से तिर्यंच जीवों और सामान्य मनुष्यों के भी आहारक शरीर संभव नहीं है ।
विशिष्ट लब्धिधारी चतुर्दशपूर्वधर मुनिराजों को वैक्रिय और आहारकलब्धि प्राप्त तो होती है किन्तु इनमें से वे एक ही शरीर बना सकते हैं, चाहे वैक्रिय और चाहे आहारक ।
इन दोनों शरीर के एक समय में एक साथ न होनेका कारण है प्रमत्तदशा । वैक्रियशरीर सदैव प्रमत्तदशा में बनता है और जब तक वह शरीर रहता है, तब तक प्रमत्तदशा ही रहती है ।
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यद्यपि आहारकशरीर की निर्माण प्रक्रिया तो प्रमत्तदशा में ही होती है लेकिन तुरन्त ही मुनिराजअप्रमत्तदशा में आरोहण कर जाते हैं और जब तक आहारक शरीर का संहरण नहीं कर लेते तब तक अप्रमत्त दशा में ही रहते हैं, प्रमत्तदशा में नहीं आते ।
अतः एक जीव के एक साथ (एक समय ) कम से कम दो और
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