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जीव-विचारणा
तैजस् और कार्मण शरीर का आत्मा से सम्बन्ध
अनादि सम्बन्धे च |४२ ।
सर्वस्य |४३|
(तैजस् और कार्मण) इन दोनों शरीरों का आत्मा के साथ अनादि काल से सम्बन्ध है ।
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(तैजस् और कार्मण) यह दोनों शरीर सभी संसारी जीवों के होते हैं।
विवेचन - तैजस् और कार्मण इन दोनों शरीरों का आत्मा के साथ जो अनादि सम्बन्ध बताया गया हैं, वह प्रवाहरूप से है । अर्थात् वे दोनों शरीर आत्मा के साथ अनादि काल से प्रवाहरूप में लगे हुए हैं ।
जिस प्रकार नदी का प्रवाह चलता है, उसका जल प्रतिक्षण आगे बढ़ता रहता है और पिछला ( पीछे की ओर से) प्रतिक्षण आता रहता है, किन्तु जल सदा बना रहता है, यही नदी का प्रवाह है ।
इसी प्रकार तैजस् और कार्मणशरीर से पूर्व में बंधे हुए स्कन्ध (दलिक) प्रतिक्षण झरते रहते हैं और नये दलिक बँधते रहते हैं । इन दलिकों की काल सीमा भी निश्चित है और इनमें बंध तथा निर्जरा भी प्रतिक्षण होती रहती है; फिर भी ये दोनों शरीर आत्मा के साथ लगे ही रहते हैं । सभी संसारी जीवों के यह दोनों शरीर स्थायी रूप से रहते हैं ।
आगम वचन
गोयमा ! जस्स वेउव्वियसरीरं तस्स आहारगसरीरं णत्थि । जस्स पुण आहारगसरीरं तस्स वेउव्वियसरीरं णत्थि ।
तेयाकम्माइ जहा ओरालिएणं सम्मं तहेव आहारगसरीरेण वि सम्मं तेयाक म्माइ तहेव उच्चारियव्वा ।
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गोयमा ! जस्स तेयगसरीरं तस्स कम्मगसरीरं णियमा अत्थि, जस्स वि कम्मगसरीरं तस्सवि तेयगसरीरं णियमा अत्थि ।
प्रज्ञापना, पद २१
गौतम ! जिसके वैक्रियशरीर हो उसके आहारकशरीर नहीं होता और जिसके आहारकशरीर होता है, उसके वैक्रियशरीर नहीं होता ।
तैजस् और कार्मणशरीर औदारिकशरीर वाले के समान वैक्रिय
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