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जीव-विचारणा ११७ (तेजस् और कार्मण-दोनों शरीर) अप्रतिहत गति वाले हैं।
विवेचन - प्रस्तुत चार सूत्रों में पांच शरीरों की विशेषताओं का वर्णन हुआ है ।
सूक्ष्म का अभिप्राय - यहाँ सूक्ष्मता का अभिप्राय इन्द्रियगोचर न होने से और प्रदेशों (परमाणुओं) के घनत्व - सघन बंधन से है ।
एक स्थूल उदाहरण लें - रूई, वस्त्र, काष्ठ, स्वर्ण और पारे का । इनमें उत्तरोत्तर एक-दूसरे में प्रदेशों का अधिक घना बन्धन है । इसे आज की वैज्ञानिक भाषा में घनत्व (Density) कहते है । इनमें एक-दूसरे से प्रदेशों की अधिकाधिक सघनता है, इसी कारण एक-दूसरी से क्रमशः भार भी अधिक होता जाता है ।
इसी प्रकार औदारिक शरीर की अपेक्षा वैक्रिय शरीर में असंख्यातगुणे प्रदेश हैं; किन्तु वह सूक्ष्म है क्योंकि इसके प्रदेशों की सघनता औदारिक शरीर की अपेक्षा असंख्यातगुणी है । यही क्रम आहारक शरीर तक हैं ।
तैजस् में अनन्तगुणे प्रदेश हैं और कार्मण शरीर में उससे भी अनन्त गुणे । प्रदेशों की सघनता के कारण यह उत्तरोत्तर सूक्ष्म हैं । इनमें इन्द्रियों से अगोचरता बढ़ती जाती है ।
अत्यन्त सूक्ष्म होने के कारण ही अन्तिम दो शरीरों-तैजस् और कार्मण की गति अप्रतिहत है ।।
अप्रतिहत का अर्थ है-न ये किसी से रुकते हैं और न ही किसी को रोकते हैं । यह दोनों शरीर वज्रपटलों को भी भेदते हुए निकल जाते हैं। आधुनिक विज्ञान ने भी मानव के बाह्य औदारिक शरीर के अन्तर्गत छिपे शरीर के विषय में काफी खोजबीन की है ।
वस्तुतः आज के विज्ञान का आधार जिज्ञासा है । वैज्ञानिकों ने मृत्यु को समझने के प्रयत्न में देखा कि बाह्य शरीर तो ज्यों का त्यों है, इन्द्रियाँ आदि सभी यथास्थान स्थित हैं, फिर इसमें से क्या निकल गया कि शरीर की हलन-चलन क्रियाएँ रुक गयीं, श्वासोच्छ्वास बन्द हो गया ।
जिज्ञासा हुई तो खोज भी हुई । वैज्ञानिकों ने जब एक्स-रे किरणों का पता लगा लिया तो वह शरीर के अन्दर झाँकने में, चित्र लेने में समर्थ हो गये; और भी सूक्ष्मग्राही कैमरे बने । इनसे शरीर के अन्दर के चित्र लिये गये ।
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