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९२ तत्त्वार्थ सूत्र अध्याय २ : सूत्रं ६ उपयोग के भेद - ___ स द्विविधोऽष्टचतुर्भेद : ।९।
वह (उपयोग) दो प्रकार का है और इनके (इन दोनों प्रकारों के) आठ तथा चार भेद है ।
विवेचन - उपयोग के दो मूल भेद हैं - (१) साकार उपयोग और (२) अनाकार उपयोग ।
साकार (विशेष) उपयोग ज्ञान का होता है अतः इसे ज्ञानोपयोग भी कहते हैं तथा दर्शन (सामान्य) अनाकार होने से इसका उपयोग भी अनाकार ही होता है अतः अनाकारोपयोग को दर्शनोपयोग भी कहा जाता है ।।
चूँकि ज्ञान आठ प्रकार का होता है, अतः ज्ञानोपयोग भी आठ प्रकार का है - (१) मतिज्ञान (२) श्रुतज्ञान (३) अवधिज्ञान (४) मनःपर्यवज्ञान (५) केवलज्ञान (६) मतिअज्ञान (७) श्रुतअज्ञान (८) विभंग (कुअवधिं) ज्ञान
इन आठ प्रकार के ज्ञानों मे से आत्मा जब जिस उपयोग में जानने की क्रिया करता है तब उसका उपयोग भी उसी प्रकार का हो जाता है ।
___दर्शन चार प्रकार का है - (१) चक्षुदर्शन (२) अचक्षुदर्शन (३) अवधिदर्शन (४) केवलदर्शन । इन दर्शनों में जब आत्मा की चेतना अथवा उपयोग-धारा प्रवाहित होती है, तब वह उपयोग भी इन दर्शनों के कारण चार भागों में विभाजित हो जाता है । इसी अपेक्षा से चार प्रकार के दर्शनोपयोग कहे गये हैं ।
___ दर्शन गुण की एक विशेषता यह है कि वह वस्तु के सामान्य रूप को ही ग्रहण करता है । जैसा कि कहा गया है - सामान्यसत्तावलोकनम् दर्शन। यह वस्तु के आकार आदि को ग्रहण नहीं करता, इसी लिए दर्शनोपयोग को अनाकार अथवा निराकार उपयोग कहा गया है ।
ज्ञान विशेष अंश को ग्रहण करता है, आकार आदि का भी प्रत्यक्ष करता है । इसी कारण इससे साकारोपयोग कहा गया है । आगम वचन - दुविहा सव्वजीवा पण्णत्ता - सिद्धा चेव असिद्धा चेव ।
स्थानांग, स्थान २, उ. १, सूत्र १०१ संसारसमावन्नगा चेव असंसारसमावन्नगा चेव ।
स्थानांग, स्थान २, उ. १, सूत्र ५७
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