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९४ तत्त्वार्थ सूत्र अध्याय २ : सूत्र ११-१२ संसारी जीवों के प्रकार -
समनस्काऽमनस्काः ।१॥ (संसारी जीव) मनसहित और मनरहित-दो प्रकार के होते हैं ।
विवेचन - मन का कार्य है-विचार करना, ऊहापोह करना आदि । जिन जीवों में यह शक्ति होती है, उन्हें मन सहित अथवा समनस्क जीव कहा जाता है और जिनमें यह शक्ति नहीं होती वे मनरहित कहलाते हैं ।
यहाँ जिज्ञासा हो सकती है कि क्या मनरहित जीवों के कोई भाव या अध्यवसाय आदि भी नहीं होता ?
इस जिज्ञासा का समाधान यह है कि उनके केवल भाव-मन होता है, द्रव्य-मन नहीं होता । और द्रव्य-मन के बिना भाव-मन चिन्तन, संकल्प आदि क्रियाओं को करने में सक्षम नहीं हो पाता ।।
इसे एक उदाहरण से समझें । एक व्यक्ति है । किसी एक्सीडेंट या किसी अन्य कारणवश, उसके हाथ में या पाँव में अथवा वृद्धावस्था के कारण ही, हाथ-पाँव में अशक्तता आ गई, कोई ‘नस या रक्तवाहिनी शिरा नाड़ी में कुछ विकार आ गया, रक्त संचरण सही रूप में नहीं हो रहा है; तो वह व्यक्ति न हाथ से कुछ काम कर सकता है, न बोझा ही उठा सकता है और न अपने पाँव से चल ही सकता है । हाँ, लकड़ी के सहारे चल लेता है ।
इसी प्रकार भाव-मन को जब द्रव्य-मन का सहयोग प्राप्त हो जाता है, तब वह कार्य कर पाता है, अन्यथा अशक्त सा रह जाता है, अपने कार्यो की अभिव्यक्ति नहीं कर पाता ।।
मनसहित और मनरहित-यह दोनों भेद द्रव्यमन की अपेक्षा से हैं । आगम वचन - संसारसमावन्नगा तसे चेव थावरा चेव ।
- स्थानांग, स्थान २, उ. १, सूत्र ५७ (संसारी जीवों के दो भेद हैं - (१) त्रस और (२) स्थावर।) अन्य अपेक्षा से संसारी जीवों के भेद
संसारिणस्त्रसस्थावराः ।१२। संसारी जीवों के दो प्रकार हैं - (१) त्रस और (२) स्थावर
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